रुपये का इतिहास

Rupees

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रुपया शब्द का उद्गम संस्कृत के शब्द रुप् या रुप्याह् में निहित है, जिसका अर्थ चाँदी होता है और रूप्यकम् का अर्थ चाँदी का सिक्का है।

भारत से पहले चीन में कागज़ के नोटों का चलन था. प्रसिद्ध मंगोल योद्धा चंगेज़ खान के पोते कुबलाई खान ने चीन में सबसे पहले कागज़ के नोटों का चलन शुरू किया था. कुबलाई खान अपनी दूरदर्शिता और आधुनिक प्रयोगों के लिए जाना जाता था. उसी के समय इटली के प्रसिद्ध यात्री मार्को पोलो ने चीन की यात्रा की थी और शेष विश्व को चीन के बारे में बताया. यह बात तेरहवी शताब्दी की है.

रुपया शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम शेर शाह सूरी ने भारत मे अपने शासन १५४०-१५४५ के दौरान किया था। शेर शाह सूरी ने अपने शासन काल में जो रुपया चलाया वह एक चाँदी का सिक्का था जिसका भार १७८ ग्रेन (११.५३४ ग्राम) के लगभग था। उसने तांबे का सिक्का जिसे दाम तथा सोने का सिक्का जिसे मोहर कहा जाता था, को भी चलाया।

भारत में नोट सबसे पहले बैंको ने छापने शुरू किये. बैंक इनका उपयोग आपस में लेनदेन के लिए करते थे. बाद में ब्रिटिश सरकार ने एक कानून पास कर के सारे नोट छापने का अधिकार अपने हाथ में ले लिया. पहले ये कार्य ब्रिटिश सरकार के अधीन कार्य करने वाले लेखाकार और टकसाल करते थे. 1934 में रिज़र्व बैंक की स्थापना के बाद यह कार्य रिज़र्व बैंक को दे दिया गया. तब से यह कार्य रिज़र्व बैंक कर रहा है.

इस समय भारत में 2000 रुपये का नोट सबसे बड़ा नोट है. पर क्या आप जानते हैं कि कभी 5000 और 10000 के नोट भी चला करते थे. सन 1954 से 1978 तक ये नोट प्रचलन में थे. 1978 में रिज़र्व बैंक आफ इण्डिया ने इन नोटों को बंद कर दिया.

History of Rupee