कोरोना वायरस का ईरान चुनावों पर असर । कट्टरपंथी बना सकते हैं सरकार
ईरान में हुए संसदीय चुनावों में मतदान का प्रतिशत काफ़ी कम देखा गया. ईरान में कुल 42.6% मतदान हुआ जो कि साल 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद इराक़ में हुआ सबसे कम मतदान प्रतिशत है. ईरान में करीब 5.8 करोड़ मतदाता हैं.
कम मतदान की वजह कोरोना वायरस को बताया जा रहा है. ईरान में कोरोना वायरस फैलने से हालात गंभीर होते जा रहे हैं. यहां अभी तक कुल पैंतीस मामले आए हैं जिनमें से आठ लोगों की मौत हो चुकी है

हालाँकि ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह ख़मेनई ने शुक्रवार 21 फ़रवरी को हुए चुनाव में हुए मतदान की प्रशंसा करते हुए इसे शानदार बताया है. ख़मेनई ने कहा कि ईरान के दुशमनों ने कोरोना वायरस के प्रभाव को बढ़ा चढ़ा कर पेश क़िया जिससे मतदान प्रभावित हुआ.
अभी ईरान में हसन रूहानी की सरकार है जो राजनैतिक रूप से उदारवादी समझे जाते हैं. रूहानी 2017 में नागरिकों को अधिक आजादी और पश्चिमी देशों से बेहतर संबंधों के वादे के साथ सत्ता में वापस आए थे.
इस चुनाव में ईरान के कट्टरपंथी जीत की ओर बढ़ते दिख रहे हैं. अमेरिका द्वारा ईरान पर प्रतिबन्ध लगाये जाने की वजह से ईरान में एक आर्थिक अस्थिरता आयी है, इसके अलावा जनवरी में गलती से यूक्रेन का विमान गिराए जाने और साथ ही बढ़ती बेरोज़गारी की वजह से ईरान में सरकार विरोधी स्वर तेज हुए हैं. यही नहीं वर्तमान संसद के कई सदस्यों के खिलाफ आर्थिक भ्रष्टाचार की जांच जारी है.इसी वजह से ईरान में कट्टरपंथियों के पक्ष में एक माहौल बना है.
ईरान की संसद में 290 सीटें हैं. इन सीटों के लिए 16 हजार से ज्यादा उम्मीदवार मैदान में हैं. चुनाव से पहले ईरान की चुनाव निगरानी संस्था गार्डियन काउंसिल ने हजारों प्रत्याशियों को अयोग्य करार देते हुए उनकी उम्मीदवारी निरस्त कर दी थी. इनमें से ज्यादातर उदारवादी थे. इस वजह से भी कट्टरपंथियों की जीत को आसान माना जा रहा है.
राजधानी तेहरान की सभी तीस सीटें खमेनई के समर्थक कट्टरपंथियों के पक्ष में जाती दिख रही हैं.