क्या है नागरिकता संशोधन क़ानून CAA
नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध भारत के लिए एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है. इस विरोध ने एक तरह से साम्प्रदायिक रूप ले लिया है. इसी का नतीजा दिल्ली में देखने को मिला जहां विरोध और समर्थन के बीच भड़की हिंसा में 23 लोग मारे गए.
नागरिकता संशोधन क़ानून कोई नया क़ानून नहीं है. यह भारतीय नागरिकता क़ानून जो 1955 में पारित हुआ था उसमें किया गया एक संशोधन है. इस संशोधन के अनुसार ३१ दिसम्बर सन २०१४ के पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हिन्दू, बौद्ध, सिख, जैन, पारसी एवं ईसाई को भारत की नागरिकता प्रदान की जा सकेगी.
यह सुविधा भारत आए मुसलमानो को हासिल नहीं होगी.
सरकार का तर्क है कि यह संशोधन सिर्फ़ पकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए अल्पसंख्यक समुदाय के लिए है. जबकि इन देशों में मुसलमान बहुसंख्यक हैं.
इसके अलावा 31 दिसंबर, 2014 या उससे पहले भारत आने वाले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के छह धर्मों के अल्पसंख्यकों को घुसपैठिया नहीं माना जाएगा भले ही वे अवैध तरीक़े से भारत में आए हों.
सरकार ने भारत में नागरिकता प्राप्त करने के लिए भारत में रहने की न्यूनतम अवधि को भी 11 साल से घटा कर 5 साल कर दिया है. पहले भारत की नगरिकता हासिल करने के लिए विदेशियों को कम से काम 11 साल तक भारत में रहना आवश्यक था. अब वे पाँच साल में ही नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं.
मुख्य विवाद की जड़ मुसलमानो को इस संशोधन का लाभ न मिल पाना है. क़ानून के विरोधी कहते हैं कि यह भारत के सम्विधान की मूल भावना के ख़िलाफ़ है जो देश में सभी धर्मों को समान आज़ादी देता है.