क्यूँ डूबा येस बैंक ?
येस बैंक के डूब जाने से भारतीय बैंकिंग व्यवस्था एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गयी है. क्या यह सिर्फ़ नियमों में की गयी हेराफेरी का मामला है या इसके तार भ्रष्टाचार से भी जुड़े हुए हैं , इसका पता तो जाँच के बाद ही चलेगा. लेकिन येस बैंक के हाल ने निवेशकों को तगड़ा झटका दे दिया है और साथ ही इसके संस्थापक राणा कपूर हिरासत में हैं.
दिल्ली के एक बिज़नेस परिवार में जन्मे राणा कपूर ने 1977 में श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स (SRCC) से इकॉनमिक्स में बैचलर्स की डिग्री ली और उसके बाद 1980 में अमेरिका के न्यू जर्सी की रटगर्स यूनिवर्सिटी से MBA किया. राणा कपूर अमेरिका के सिटी बैंक में बतौर इंटर्न अपने करियर की शुरुआत की. साल 1980 में कपूर ने बैंक ऑफ अमेरिका में नौकरी करनी शुरू की और यहाँ उन्होंने अगले पंद्रह सालों तक काम किया. राणा कपूर हमेशा से ही अपना बैंक स्थापित करना चाहते थे.

राणा कपूर और उनके रिश्तेदार अशोक कपूर ने 1998 में हाॅलैंड के रोबो बैंक के साथ गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) रोबो इंडिया फाइनेंस की स्थापना की। इसमें दोनों समेत एक अन्य पार्टनर हरकीरत सिंह की 25-25% हिस्सेदारी थी. 2003 में तीनों ने रोबो इंडिया में अपनी हिस्सेदारी बेच दी.
साल 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय राणा कपूर और अशोक कपूर रिज़र्व बैंक से बैंकिंग लाइसेंस लेने में सफल हो गए और दो सौ करोड़ की पूँजी के साथ अशोक और राणा कपूर ने साल 2004 मुंबई में येस बैंक की शुरुआत की. इसमें राणा कपूर का शेयर 26 फीसदी, अशोक कपूर का 11 फीसदी और रैबोबैंक इंटरनेशन का 20 फीसदी हिस्सा था.
शुरुआत के दिनो से ही येस बैंक ने अपनी एक अलग पहचान बना ली थी. बैंक निवेशकों और लोन लेने वालों की पसंद बन रहा था. बैंक की बेलेंस शीट भी ठीक थी. येस बैंक ने शुरू से ही टेक्नोलोजी का बेहतर इस्तेमाल कर अपने व्यापार को नए आयामों तक पहुँचा दिया.
बताया जाता है कि अशोक कपूर और राणा कपूर के काम करने के तरीक़े में काफ़ी फ़रक था. अशोक सम्हल कर काम करने वालों में से थे तो राणा कपूर तेज तर्रार और रिस्क लेने वालों में से थे.
साल 2008 में मुंबई में आतंकवादी हमला हुआ. इस हमले में अशोक कपूर की मौत हो गयी. और यहाँ से शुरू हुआ पहला विवाद.अशोक कपूर की पत्नी मधु कपूर और राणा कपूर के बीच बैंक के मालिकाना हक को लेकर लड़ाई शुरू हो गई. मधु अपनी बेटी शगुन गोगिया के लिए बोर्ड में जगह चाहती थीं. मामला बॉम्बे हाईकोर्ट पहुंचा और साल 2011 में राणा कपूर के पक्ष में फैसला आया.
बाद के सालों में राणा कपूर ने जमकर लोन बाँटने शुरू किए. येस बैंक निवेशकों में लोकप्रिय हो गया. कपूर के शेयरों के प्राइस बढ़े और वो करोड़पति बन गए. देखते-देखते यस बैंक चौथा सबसे बड़ा निजी बैंक बन गया. देशभर में आज इसके 1000 से ज़्यादा ब्रांच हैं और 1800 एटीएम हैं.
बैंकिंग जगत में राणा कपूर की पहचान एक ऐसे बैंकर की बनी, जो ऐसे कर्ज देने में भी नहीं हिचकते थे. यस बैंक ने अनिल अंबानी ग्रुप, आईएलएंडएफएस, सीजी पावर, एस्सार पावर, रेडियस डिवेलपर्स और मंत्री ग्रुप जैसी कम्पनियों को कर्ज दिया. हालाँकि बैंक ने इन कम्पनियों की लोन चुकाने की क्षमता की सही से जाँच नहीं की. नतीजा यह कि ये सारे लोन डिफ़ौल्टर हो गए अर्थात् बैंक को उसका पैसा नहीं मिला. ऐसे लोन बैंकिंग की भाषा में एनपीए कहे जाते हैं.
2016 में रिज़र्व बैंक ने जब सभी बैंकों को एनपींए पर कसना शुरू किया तो पता चला कि येस बैंक भी गहरे पानी में है. 2017 में बैंक ने 6,355 करोड़ रुपये की रकम को बैड लोन में डाल दिया था. इसके बाद रिज़र्व बैंक आफ इंडिया (आरबीआई) हरकत में आया और साल 2018 में आरबीआइ ने कपूर पर कर्ज और बैलेंसशीट में गड़बड़ी के आरोप लगाए और उन्हें चेयरमैन के पद से जबरन हटा दिया. अगस्त 2018 से सितंबर, 2018 तक यस बैंक के शेयर में 78 फीसदी की गिरावट आई. 2019 में शेयर और भी गिर गए.
इस दौरान आरबीआइ ने नया बोर्ड बना दिया. इस बीच बैंक में बाहरी कम्पनियों द्वारा निवेश कराने की लाखों कोशिशें हुई. लेकिन हर कम्पनी बैंक की बैलेन्स शीट और खाते देखकर पीछे हट जाती. एसा लगने लगा कि बैंक को बचाने की सभी कोशिशें नाकाम हो रही हैं. इस समय आरबीआइ ने अपने विशेष अधिकार का प्रयोग करते हुए स्टेट बैंक आफ इंडिया को मदद के लिए कहा. संकट के बीच स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने यस बैंक को बचाने का प्लान पेश किया और उसपर काम भी शुरू कर दिया है. एसबीआई 2,450 करोड़ रुपये में यस बैंक के 10 रुपये अंकित मूल्य वाले 245 करोड़ शेयर खरीदेगा. एसबीआई संकटग्रस्त यस बैंक में 49 प्रतिशत हिस्सेदारी ले सकता है.
राणा कपूर को प्रवर्तन निदेशालय ने हिरासत में ले लिया है. आरोप है कि राणा कपूर, उनकी तीनो बेटियों , उनकी पत्नी और दामाद ने कई शेल कम्पनियों के निदेशक हैं. इन कम्पनियों को कई उन कम्पनियों ने “रिश्वत” दी जिन्हें येस बैंक द्वारा लोन दिया गया. मीडिया में आइ खबरों के मुताबिक़ राणा परिवार ने बैंक का अपने व्यक्तिगत हितों के लिए इस्तेमाल किया और लोन देने में व्यक्तिगत संबंधो का इस्तेमाल किया. इन्होंने लोन लेने वालों की क्रेडिट क्षमता की भी सही जाँच नहीं की.