मध्य प्रदेश में कमलनाथ का इस्तीफ़ा, गुटबाज़ी का शिकार कांग्रेस के लिए एक और झटका
मध्य प्रदेश का सियासी ड्रामा उस समय एक नए मोड़ पर पहुँच गया जब मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपना इस्तीफ़ा राज्यपाल को दे दिया. उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने सदन में बहुमत साबित करने के लिए कहा था. लेकिन उन्होंने पहले ही अपना पद छोड़ दिया. आख़िर सिंधिया की नाराज़गी कांग्रेस के लिए बहुत भारी साबित हुई है.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ज्योतिरदित्य सिंधिया का पार्टी से विदा लेना कांग्रेस के लिए आसान बात नहीं है. कांग्रेस के हलकों में ये चर्चा आम है कि सिंधिया को रोका जा सकता था. हालाँकि यह भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस के भीतर की गुटबाज़ी सिंधिया के लिए भारी पड़ी है.उनके समर्थक मानते हैं मध्य प्रदेश में पार्टी को जीत दिलाने के बावजूद उन्हें उचित सम्मान नहीं मिला. हद तो तब हो गयी जब उन्हें राज्य सभा की उम्मीदवारी से भी बाहर करने की बात होने लगी. राज्यसभा के लिए सिंधिया की बजाय दिग्विजय सिंह और प्रियंका गांधी के नाम सामने आए.
मध्य प्रदेश की कांग्रेसी राजनीति में सिंधिया, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह दिग्गज हैं. कमलनाथ और दिग्विजय बुजुर्ग नेता हैं और अपने पुत्रों के लिए ज़मीन तैयार कर रहे हैं. युवा सिंधिया उनके लिए एक तगड़े प्रतिद्वंदी थे.कमलनाथ और दिग्विजय सिंह का रवैया सिंधिया को लेकर कभी बहुत सकारात्मक नहीं रहा. यही वजह रही कि सिंधिया कमलनाथ सरकार के फ़ैसलों के ख़िलाफ़ मुखर होकर बोलते रहे.
सिंधिया ने कांग्रेस का हाथ छोड़ कर बीजेपी की सदस्यता ले ली थी. सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ने से पहले ये आरोप लगाया था कि कांग्रेस में उनकी उपेक्षा हो रही है. ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में जाते ही उनके खेमे के 22 विधायकों ने भी बगावत कर दी. और कमलनाथ को इस्तीफ़ा देना पड़ा.
तो क्या कांग्रेस के इस संकट को टाला जा सकता था? कई राजनैतिक पंडितो का कहना है कि कांग्रेस ने अपने लिए स्वयं संकट मोल लिया है. लगता है कांग्रेस के अंदर ऐसा कोई फोरम नहीं है जहां पर नाराज नेताओं को अपनी बात रखने का मौक़ा दिया जाए.
अब सवाल यह है कि कांग्रेस में आगे अब क्या होगा. सिंधिया कोई छोटे नेता नहीं थे.उन्हें कांग्रेस में राहुल गांधी के बाद अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में भी देखा जा रहा था. लेकिन कांग्रेस की जो स्थिति बेहद नाज़ुक है. पार्टी में कोई राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं है, पार्टी के पुराने नेता गांधी परिवार के मोह से बाहर नहीं आ पा रहे हैं और गांधी परिवार पार्टी में नई जान फूंकने में सक्षम नहीं दिख रहा.