मज़दूरों की भीड़ का पलायन जारी, क्या लॉकडाउन के लिए तैयार थी सरकार
भारत में एकाएक घोषित किए गए लॉकडाउन की वजह से हज़ारों प्रवासी मज़दूर ट्रेन और बस स्टेशनों में जमा हो गए हैं, ये लोग अपने घरों को वापस लौटना चाहते हैं. इससे लॉकडाउन के मक़सद के विफल होने की सम्भावना बन गयी है. लॉकडाउन का एकमात्र उद्देश्य है कि लोग एक दूसरे के सम्पर्क में न आयें पर मज़दूरों की भीड़ कुछ और ही तस्वीर दिखा रही है. इस वजह से कोरोना के फैलने के आसार बेहद बढ़ गए हैं. स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार कोरोना के सक्रमण से बचने के लिए लोगों को एक दूसरे से कम से कम 6 फ़ीट दूर रहना चाहिए.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च को 21 दिन के राष्ट्रव्यापी बंद की घोषणा की थी जिसके बाद सड़क, रेल और हवाई यातायात सहित सभी तरह का परिवहन बंद हो गया. लॉकडाउन का सबसे ज्यादा असर दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ा जिसके बाद हजारों लोगों विभिन्न राज्यों में स्थित अपने घरों की ओर पलायन शुरू कर दिया हालत तब ख़राब हो गई जब लोग पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर का सफ़र तय करने लगे. एक प्रकार से भारत में मज़दूरों पर दोहरी मार पड़ी है.
कई विपक्षी नेता और सामाजिक कार्यकर्ता भारत सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि सरकार ने बिना किसी तैयारी के लॉकडाउन का फ़ैसला ले लिया जबकि सरकार को हफ़्तों पहले से पता था कि ऐसी स्थिति आ सकती है. साथ ही यह भी सवाल उठने लगे थे कि कोरोना संकट से निपटने के लिए सरकार की तरफ से पहले सही कदम नहीं उठाए गए थे.
हालाँकि अब सरकार लोगों से दूरी बनाए रखने की अपील कर रही है और जरूरतमंदों को भोजन, रहने की जगह और परिवहन उपलब्ध कराने का दावा कर रही है.
भारत भी कोरोना के संकट से गुज़र रहा है , हालाँकि विश्व के अन्य देशों की तुलना में भारत में कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या कम है पर विशेषज्ञों का कहना है कि अभी भारत में कोरोना के टेस्ट काफ़ी कम हो रहे हैं और जैसे जैसे टेस्ट की संख्या बढ़ेगी कोरोना के और अधिक मामले सामने आएँगे.