कोरोना : भारत में वेंटिलेटर की कमी बन सकती है बड़ा ख़तरा, कितना तैयार है देश

भारत में कोरोना ने अपने पाँव पसारने शुरू कर दिए हैं और इसी के साथ दुनिया भर की निगाहें भारत की ओर लग गई हैं , ये देखने के लिए कि भारतीय स्वास्थ्य व्यवस्था इस ख़तरे से निबटने के लिए तैयार है भी या नहीं. फ़िलहाल जिस तरह की खबरें आ रही हैं उससे तो लग रहा है कि स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. सबसे बड़ी समस्या है वेंटिलेटर्स की.

वेंटिलेटेर वो मशीन है जिसमें मरीज़ को तब ले जाया जाता है जब उसे साँस लेने में दिक़्क़त हो. कई मामलों में मरीज़ प्राकृतिक रूप से साँस नहीं ले पाता तब वेंटिलेटर का इस्तेमाल मरीज़ को साँस देने में किया जाता है. कोरोना की वजह से में फेफड़ों में संक्रमण हो जाता है और उनमें पानी भर जाता है. इस वजह से साँस लेने में दिक़्क़त होती है. इसलिए कई मरीज़ों को वेंटिलेटर पर रखा जाता है. एसा ज़रूरी नहीं कि कोरोना के हर मरीज़ को वेंटिलेटर की ज़रूरत होती है. आँकड़े बताते हैं कि सिर्फ़ 5 से 10 फ़ीसदी मरीज़ों को वेंटिलेटर की ज़रूरत पड़ सकती है.

वेंटिलेटर कोरोना के मरीज़ों को बचाने में एक अहम मशीन है. जब से कोरोना का संकट शुरू हुआ है दुनिया भर के देशों में वेंटिलेटर की कमी सामने आइ है.

भारत में वेंटिलेटर पहले से ही बहुत कम हैं. ये बड़े अस्पतालों में ही उपलब्ध हैं वो भी गिनती में. कई वेंटिलेटर पहले से ही अन्य मरीज़ों के इलाज में लगाए गए हैं. कुछ आँकड़ो के मुताबिक़ भारत में कुल पचास हज़ार के आस पास वेंटिलेटर हैं. यह संख्या हर लिहाज़ से बहुत कम है. डॉक्टरों के मुताबिक जल्दी ही 80 हजार से एक लाख तक वेंटिलेटर की जरूरत पड़ सकती है. डर इस बात का भी है कि यदि छोटे शहरों के अस्पतालों तक वेंटिलेटर समय पर नहीं पहुँचे तो स्थिति और गम्भीर हो सकती है.

सरकार की मदद को अब कई कार कम्पनियाँ आगे आइ हैं और उन्होंने वेंटिलेटर बनाने की बात कही है जैसे महिंद्रा,टाटा और मारुति. सार्वजनिक कंपनी भेल ने वेंटिलेटर कंपनियों से टेक्निकल डिटेल मांगी है ताकि वेंटिलेटर के उत्पादन को तेज करने में उनकी मदद कर सके. मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज भी वेंटिलेटर उत्पादन में मदद कर रही है. ये कम्पनियाँ वेंटिलेटर बनाने की विशेषज्ञता नहीं रखती. चूँकि इनकी तकनीकी उत्पादन क्षमता अधिक है और इनके पास संसाधन भी हैं तो ये कम्पनियाँ वेंटिलेटर बनाने वाली कम्पनियों के साथ मिलकर काम कर रही हैं ताकि उत्पादन में तेज़ी आ सके. विश्व भर में कार कम्पनियाँ वेंटिलेटर बनाने में मदद कर रही हैं.

लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि वेंटिलेटर के उत्पादन की दर कम हो सकती है. भारत में कंपनिया वेंटिलेटर बनाने के लिए विदेशों से पार्ट आयात करती हैं और भारत में सिर्फ़ असेम्बली या उन्हें जोड़ने का काम करती हैं. चूँकि वेंटिलेटर की माँग विश्व स्तर पर बढ़ी है तो उनको बनाने वाले पार्ट भी आयात में देरी कर सकते हैं.

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को वेंटिलेटर को लेकर पहले से ही प्रयास कर देने चाहिए थे. भारत में कोरोना पहला मामला जनवरी में सामने आया था और इसके बाद से डाक्टर इस बीमारी के फैलने की सम्भावना पर संसाधनों की कमी की बात कर रहे थे.