निजामुद्दीन मामला – क्या ऐसे कोरोना से लड़ पायेगा भारत ? लापरवाही सरकार की या लोगों की
दिल्ली के निजामुद्दीन में कोरोना के बढ़ते मरीज़ों ने भारत के लिए एक बड़ी मुसीबत पैदा कर दी है. यह कोरोना के प्रति लोगों की लापरवाही और प्रशासन के ढीले रवैये को दिखता है. सारी समस्या तब शुरू हुई जब तबलीग़ी जमात नाम के एक इस्लामिक धार्मिक संगठन ने यहाँ एक आयोजन कराया जिसमें में बड़ी तादाद में लोगों ने शिरकत की थी. इसमें भारत के दूसरे हिस्सों से आए हुए करीब छह सौ लोग थे और इसके साथ ही इंडोनेशिया, सऊदी अरब , दुबई, उज़बेकिस्तान और मलेशिया से आए लोग भी शामिल थे. अब पता चला है कि शिरकत करने वाले कई लोग कोरोना से पॉजिटिव हैं.
दिल्ली सरकार के अनुसार इस आयोजन में भाग लेने वाले 24 लोग संक्रमित पाए गए हैं और मरकज में रह रहे 440 से अधिक लोगों में बीमारी के लक्षण दिखने के बाद उन्हें अस्पतालों में भर्ती कराया गया है. ताज़ा जानकारी के अनुसार मरकज़ के कार्यालय के तीन किलोमीटर और निज़ामुददीन के पांच किलोमीटर के दायरे के भीतर रहने वाले हर व्यक्ति की जांच होगी. जिन लोगों में ज़रा सा भी खांसी, बुखार जैसे लक्षण भी पाए गए उनका इलाज होगा.
किसकी ज़िम्मेदारी ?
हैरत की बात यह है कि इस कार्यक्रम के लिए लोगों ने 10 मार्च से आना शुरू किया और 15 मार्च तक लोग वहां जुड़ते रहे. जबकि इस समय दिल्ली में भीड़भाड़ वाले आयोजन करने पर प्रतिबन्ध था. इसके अलावा इस कार्यक्रम में मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे देशों से भी लोग आये थे और इन देशों में पहले से ही कोरोना का संक्रमण चल रहा था. पूरे देश में यह अलर्ट था कि विदेश से आने वाले लोगों पर नज़र रखी जाये. फिर भी देश की राजधानी में इतनी बड़ी भीड़ जमा हो गई और प्रशासन को कुछ खबर नहीं हुई ? और अगर प्रशासन को पता था कि निजामुद्दीन में इतने लोग जमा हैं तो फिर समय पर कार्यवाही क्यों नहीं हुई. इसके अलावा सवाल तबलीग़ी जमात के आयोजकों पर भी है. क्या उन्हें नहीं पता था कि कोरोना का संकट कितना बड़ा है ? क्या इस संस्था की कोई सामाजिक ज़िम्मेदारी नहीं थी ? ऐसे कई सवालों का जवाब इस संस्था को भी देना चाहिए. इस तरह की संस्थाएं किसकी मर्ज़ी से लोगों की ज़िन्दगी के साथ खेल सकती हैं ?
यह अपने आप में लापवाही का एक ऐसा मामला है जिसका खामियाज़ा कई दूसरे लोगों को भुगतना पड़ेगा. केंद्र और राज्य सरकार बार बार यह दवा कर रही थी कि उन्होंने लोगों के जमावड़े पर रोक लगा रखी है. सभी धार्मिक स्थलों को बंद करने का आदेश 16 मार्च से लागू था तो 2300 लोग एक साथ एक जगह पर क्यों और किसकी अनुमति से आ जाते हैं ? अगर विदेश से आये लोग, जो कि टूरिस्ट वीज़ा पर आये थे ( अब तक मिली जानकारी के अनुसार ) धार्मिक आयोजनों में भाग लेते हैं – क्या यह अपने आप में कानून का उल्लंघन नहीं था ? देश की राजधानी में उम्मीद की जाती है कि सरकारी अमला सतर्क होगा – पर इस केस में तो ऐसा नहीं दिखता.
दूसरी अहम बात ये कि विदेश से आये लोगों को सेल्फ आइसोलेशन में रहने का आदेश था. क्या तबलीग़ी ज़मात या सरकार ने इस बात की पुष्टि की ? और यदि उनमे से किसी व्यक्ति को बुखार या ज़ुकाम की शिकायत थी तो क्या आयोजकों ने स्वास्थ्य अधिकारियों को उन्होंने इस बात की क्या कोई जानकारी दी थी ?
अगर कोरोना से लड़ने की तैयारियां इस तरह से की जा रहीं हैं तो भारत के लिए यह जंग बहुत मुश्किल होने वाली है.