नेपाल और भारत के बीच सीमा विवाद गहराया , क्या है सुगौली संधि ?

नेपाल और भारत के बीच सीमा विवाद गहराता जा रहा है. ताज़ा विवाद लिपुलेख को लेकर है. लिपुलेख वो इलाक़ा है जो चीन, नेपाल और भारत की सीमाओं से लगता है. नेपाल सरकार का कहना है कि भारत ने उसके लिपुलेख इलाक़े में 22 किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण किया है जबकि भारत इस इलाके को अपना हिस्सा बताता रहा है. इसी बीच नेपाल की सरकार ने अपना नया नक्शा जारी किया है जिसमें लिम्पियाधुरा कालापानी और लिपुलेख को नेपाल की सीमा का हिस्सा दिखाया गया है.

लिपुलेख एक दर्रा है जो नेपाल के पश्चिम में भारत से लगी सीमा पर विवादित क्षेत्र कालापानी के निकट स्थित है. भारत और नेपाल दोनों ही देश कालापानी को अपना अभिन्न अंग मानते हैं. भारत इसे उत्तराखंड के पिथौरागढ़़ जिले का जबकि नेपाल दार्चुला जिले का हिस्सा मानता है.

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ताज़ा विवाद की शुरुआत तब हुई जब भारत ने छः महीने पहले भारत ने अपना नया नक्शा जारी किया. जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने और जम्मू, कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के बाद भारत सरकार ने नया नक्शा जारी किया था. इस नक़्शे में लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को भारत का हिस्सा बताया गया था. ये वो इलाके हैं जिन पर नेपाल लम्बे समय से अपना अधिकार बताता है. अभी यह विवाद चल ही रहा था कि मई में भारत ने भारत के राज्य उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले से लिपुलेख तक जाने वाली सड़क का उद्घाटन कर दिया. इस सड़क के बन जाने के बाद एक या दो दिन में कैलाश मानसरोवर की यात्रा की जा सकती है. इससे पहले वहां पहुंचने में पांच से सात दिन तक का समय लग जाता था. जैसे ही इस सड़क का उद्घाटन हुआ नेपाल में विरोध के स्वर उठने लगे. यही नहीं काठमांडू में भारत विरोधी प्रदर्शन शुरू हो गए. नेपाली सरकार का कहना है कि सड़क का निर्माण ‘उसकी ज़मीन’ पर किया है, वो ज़मीन भारत को लीज़ पर तो दी जा सकती है लेकिन उस पर दावा नहीं छोड़ा जा सकता है.

नेपाल इस इलाके के कब्ज़े को लेकर “सुगौली संधि” का तर्क देता है. नेपाल के अनुसार सुगौली समझौते (1816) के तहत काली नदी के पूर्व का इलाका, लिंपियादुरा, कालापानी और लिपुलेख नेपाल का है. जबकि भारत इससे सहमत नहीं है. अब भारत और नेपाल के बीच इस मुद्दे को लेकर राजनीति गरमा गई है. नेपाल ने कहा है कि भारत के साथ सीमा पर सशस्त्रबल बढ़ाया जायेगा.

क्या है सुगौली संधि ?

1815-1816 में अंग्रेजों और नेपाल की तत्कालीन गोरखा राजशाही के बीच एक युद्ध हुआ. नेपाल ने भारत के इलाके में कब्ज़ा कर लिया था, जिसके बाद सुगौली में एक संधि हुई थी. संधि के बाद नेपाल से कब्ज़ा वापस ले लिए गया था और कहा गया था काली नदी के पश्चिम में नेपाल का कुछ नहीं रहेगा. संधि के तहत, नेपाल ने अपने नियंत्रण वाले भूभाग का लगभग एक तिहाई हिस्सा गंवा दिया जिसमे नेपाल के राजा द्वारा पिछ्ले 25 साल में जीते गये क्षेत्र जैसे कि पूर्व में सिक्किम, पश्चिम में कुमाऊं और गढ़वाल राजशाही और दक्षिण में तराई का अधिकतर क्षेत्र शामिल था. हालाँकि साल 1860 में तराई भूमि का एक बड़ा हिस्सा नेपाल को 1857 के भारतीय विद्रोह को दबाने में ब्रिटिशों की सहायता करने की एवज में पुन: लौटाया गया. नेपालियों का कहना है कि इसी समय लिपुलेख को शिफ्ट किया गया था.

यह संधि कई मामलों में स्पष्ट नहीं है. संधि यह बताने में विफल रही है कि कुछ स्थानों पर एक स्पष्ट वास्तविक सीमा रेखा कहां से गुजरेगी। कई स्थानों पर सीमा के निर्धारण और सीमा स्तंभों की स्थापना को लेकर विवाद है. अनुमान लगाया गया है ऐसे विवादित स्थानों का क्षेत्रफल लगभग 60,000 हेक्टेयर है.