अब ये क्या कह दिया नेपाल के प्रधानमंत्री ने, भगवान राम नेपाली थे ?

नेपाल के प्रधानमंत्री के भगवान राम पर दिए गए बयान को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद बढ़ता नज़र आ रहा है. पिछले दिनों नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने कहा था कि ‘भगवान राम का जन्म नेपाल में हुआ था.’ अपने सरकारी आवास पर कवि भानुभक्त के जन्मदिन पर हुए समारोह में केपी शर्मा ओली ने यह बयान दिया. ओली ने कहा कि अयोध्या भारत में नहीं, बल्कि नेपाल के बीरगंज में स्थित एक छोटा सा गांव है.

ओली यहीं पर नहीं रुके. उन्होंने कहा दशरथ के पुत्र राम भारतीय नहीं थे और अयोध्या भी नेपाल में हैं. हमने भारतीय राजकुमार को सीता नहीं दीं, जो कि जनकपुर में जन्मीं थीं, बल्कि वह अयोध्या के राम को ब्याही थी. न कि भारत के राम को।”  उनके मुताबिक, नेपाल को हमेशा से सांस्कृतिक रूप से दबाया गया है और झूठे दावे किए गए हैं.

हालाँकि इस बयान के बाद ओली अपने ही देश में घिर गए हैं. नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बाबू राम भट्टाराई ने ट्वीट किया,‘‘आदि-कवि ओली द्वारा रचित कलयुग की नई रामायण सुनिए, सीधे बैकुंठ धाम का यात्रा करिए”.

खड़ग प्रसाद शर्मा ओली जो के पी शर्मा ओली के नाम से जाने जाते हैं नेपाल के 41 वें प्रधानमंत्री हैं. वे नेपाल के नए सम्विधान के के अस्तित्व में आने के बाद बने पहले प्रधानमंत्री हैं. कम्युनिस्ट पार्टी से सम्बन्ध रखने वाले ओली की शिक्षा दसवीं तक है. वे आर्थिक अभाव में आगे नहीं पढ़ पाए. ओली जिस कम्युनिस्ट पार्टी से सम्बन्ध रखते हैं उसकी चीन से नज़दीकियाँ जग ज़ाहिर हैं. ओली के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही चीन और नेपाल काफ़ी नज़दीक आ गए हैं.

हालाँकि नेपाल और ओली ने आधिकारिक रूप से हमेशा भारत और चीन के बीच समान रिश्ते रखने की बात कही है लेकिन पिछले कुछ वर्षों के घटनाक्रम कुछ और ही तस्वीर दिखा रहे हैं. चीन का प्रभाव दक्षिण एशिया में लगातार बढ़ रहा है. वो चाहे नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान या बांग्लादेश हो. हर जगह चीन की मौजूदगी बढ़ी है. ये सभी देश चीन की वन बेल्ट वन रोड परियोजना में शामिल हो गए हैं. दूसरी तरफ़ भारत इस परियोजना के पक्ष में नहीं है.

पिछले दो सालों में चीन के राष्ट्रपति शी जीनपिंग सहित कई उच्चस्तर के अधिकारी और राजनेता नेपाल के दौरे पर आ चुके हैं. बड़े मुद्दों के अलावा कई और ऐसी बातें हैं जिनसे नेपाल का भारत से अलगाव साफ़ दिख रहा है. जैसे – साल 2019 में नेपाल ने पुणे में आयोजित बिम्सटेक देशों के सैन्य अभ्यास में शामिल होने से इनकार कर दिया था, लेकिन इसके बाद नेपाल ने चीन की सेना के साथ 12 दिनों का सैन्य अभ्यास करने पर सहमति जताई थी.

साल 2015 में जब नेपाल ने अपना नया सम्विधान लागू किया था तो इसके कुछ अंशो को लेकर आपत्ति जताई थी. तब नेपाल ने भारत से उसके आंतरिक मामलों में दख़ल न देने को कहा था. दरसल थारू और मधेशी समुदाय के लोग इस नए सम्विधान का विरोध कर रहे थे. नए सम्विधान में सात राज्यों का गठन किया गया था. अलपसंख्यक मधेसी सात राज्यों के ढांचे का विरोध कर अपने लिए अलग राज्य की मांग कर रहे थे. मधेसियों के विरोध प्रदर्शन में कई लोग मारे गए. मधेसी भारत नेपाल की सीमा के मैदानी इलाक़ों में बसे भारतीय मूल के लोगों को कहा जाता है. भारत की आपत्ति मधेसियों की उपेक्षा को लेकर थी. हालाँकि ओली की सरकार ने इसे नेपाल की स्वायत्ता पर एक दख़ल माना. इसके बाद नेपाल में भारत विरोधी आंदोलन और राष्ट्रवाद की एक लहर चल उठी. कई लोग मानते हैं कि ओली और उनकी कम्युनिस्ट पार्टी ने इस भारत विरोधी लहर को और समर्थन दिया. इससे ओली की एक राष्ट्रवादी कम्युनिस्ट की छवि बनी है.

ओली के लिए भारत से दूरी एक मजबूरी बन गई है. अगर वे भारत के साथ बहुत नज़दीक आते हैं तो चीन उन्हें आँखे दिखा सकता है क्यूँकि चीन से नेपाल ने कई तरह की आर्थिक मदद ले रखी है. लेकिन अगर वो चीन के बहुत क़रीब जातें हैं तो डर है कि कहीं नेपाल चीन का महज़ एक ज़रिया बन कर रह जाएगा भारत को परेशान करने के लिए. चीन की दिलचस्पी नेपाल के विकास से ज़्यादा भारत का विरोध करने में है.