ताइवान पर आमने सामने आये चीन और अमेरिका, क्या है वन चाइना पॉलिसी ?

अमेरिकी स्वास्थ्य मंत्री एलेक्स अज़ार के ताइवान दौरे को लेकर चीन और अमेरिका एक बार फिर आमने सामने आ गए हैं. अज़ार ने ताइवान की राष्ट्रपति साइ इंग-वेन से मुलाक़ात की और कहा कि कोरोना के ख़िलाफ़ लडाई में अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का समर्थन ताइवान के साथ है. यह मुलाक़ात ताइवान की राजधानी ताईपे में हुई.

उल्लेखनीय है कि ताइवान चीन के लिए एक सम्वेदनशील विषय है. चीन वन चाइना पॉलिसी के तहत ताइवान को अपना हिस्सा मानता है. वहीं ताइवान की मौजूदा सरकार ताइवान को एक संप्रभु देश के तौर पर देखती है और उनका मानना है कि ताइवान ‘वन चाइना’ का हिस्सा नहीं है. 1979 में चीन का समर्थन करते हुए अमरीका ने ताइवान के साथ अपने आधिकारिक संबंध तोड़ लिए थे. हालाँकि अमेरिका समय समय पर ताइवानी नेताओं से मिल कर चीन पर दबाव बनाने की कोशिश करता रहा है.

हालाँकि अमेरिकी स्वास्थ्य मंत्री की यात्रा एक बड़ा कदम है. ऐसा पिछले चालीस सालों में पहली बार हुआ है कि किसी बड़े अमेरिकी नेता ने ताइवान की यात्रा की है. इसके के बाद चीन की नाराज़गी ज़ाहिर सी बात है. चीन ने कहा है कि अमेरिका को इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे.statue-of-liberty-267948_640 (1)

वन चाइना पॉलिसी है क्या
सालों तक चले गृह युद्ध के बाद साल 1949 में चीन में कम्युनिस्टों के हाथ में सत्ता की कमान आ गई. माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों ने चीन के लगभग सारे भू भाग पर अधिकार कर लिया. कम्युनिस्ट सरकार ने चीन को “पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना” नाम दिया. इसे ही आमतौर पर चीन या मेनलैंड चाइना भी कहा जाता है. इसमें चीन के अलावा हांगकांग-मकाऊ जैसे दो विशेष रूप से प्रशासित क्षेत्र आते हैं. कम्युनिस्ट सरकार ने कहा कि उनके नियत्रण वाला चीन ही “असली” चीन है.

वहीँ गृह युद्ध के बाद कम्युनिस्टों के विरोधी ताइवान द्वीप में चले गए. ये वो लोग हैं जिनका साल 1911 से 1949 के बीच चीन पर कब्ज़ा था, तब चीन को “रिपब्लिक ऑफ़ चाइना” कहा जाता था. लेकिन अब इनके पास ताइवान और कुछ द्वीप समूह ही शेष हैं. ये अभी भी स्वयं को “रिपब्लिक ऑफ़ चाइना” कहते हैं और शेष दुनिया में इस भू भाग को ताइवान के नाम से जाना जाता है . “पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना” या चीन ने इसे कभी स्वीकार किया और कहा कि ताइवान चीन का ही हिस्सा है.

इसके बाद चीन वन चाइना पॉलिसी ले कर आया. इसमें यही माना जाता है कि चीन एक है और ताइवान उसका हिस्सा है. इसका का मतलब ये है कि दुनिया के जो देश पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना (चीन) के साथ कूटनीतिक रिश्ते चाहते हैं, उन्हें रिपब्लिक ऑफ़ चाइना (ताइवान) से सारे आधिकारिक रिश्ते तोड़ने होंगे. दुनिया के लगभग सभी देश पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना (चीन) को वास्तविक चीन मानते हैं और वन चाइना पॉलिसी को स्वीकार करते हैं. इसके तहत वे ताइवान को आधिकारिक मान्यता नहीं देते और न ही ताइवान से सीधे कूटनीतिक सम्बन्ध रखते हैं. इस नीति से चीन को फ़ायदा हुआ और ताइवान कूटनीतिक स्तर पर अलग-थलग है.

वर्तमान में ताइवान में अपनी सरकार है जिसे चीन “एक देश दो व्यवस्था” मॉडल कहता है. ताइवान की मौजूदा सरकार अपने को संप्रभु देश मानती है. वहीँ चीन का कहना है ताइवान की सरकार को चीन के अधीन रहकर ही काम करना चाहिए और ज़रूरत पड़ने पर ताक़त के ज़ोर पर चीनी सरकार ताइवान पर पूरी तरह से कब्ज़ा कर सकते हैं.सामाजिक दृष्टि से चीन ने ताइवान को हमेशा से ऐसे प्रांत के रूप में देखा है जो उससे अलग हो गया है. चीन मानता रहा है कि भविष्य में ताइवान चीन का हिस्सा बन जाएगा. जबकि ताइवान की एक बड़ी आबादी अपने आपको एक अलग देश के रूप में देखना चाहती है.