बेलारूस में विरोध जारी, यूरोपीय संघ ने दिया प्रदर्शनकरियों का साथ

बेलारूस में सरकार विरोधी प्रदर्शन थमने का नाम नहीं ले रहे हैं. पिछले सप्ताह हुए राष्ट्रपति चुनावों के बाद से ही बेलारूस में राष्ट्रपति अलेग्जेंडर लुकाशेंको के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन जारी हैं. प्रदर्शन करने वाले लोगों का कहना है कि लुकाशेंको ने धोखे से यह चुनाव जीता है और नए सिरे से चुनाव होने चाहिए. कई स्थानों पर यह प्रदर्शन हिंसक भी हो गया और कुछ लोगों हताहत होने की भी खबरें हैं. पुलिस और सुरक्षाबलों पर प्रदर्शनकारियों से क्रूरता से पेश आने की खबरें आइ हैं.

बेलारूस में विरोध प्रदर्शन पूरे देश में फैलते जा रहे हैं. सरकार का समर्थन करने वाले राष्ट्रीय चैनल ‘बेलारूस वन’ के लगभग 300 कर्मचारियों ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. इनका आरोप है कि सरकार टेलीविजन सेंसरशिप कर रही है. एक अन्य घटनाक्रम में जब राष्ट्रपति अलेक्ज़ेंडर लुकाशेंको सोमवार को मिन्स्क स्थित सरकारी मिलिट्री व्हीकल फैक्ट्री में भाषण दे रहे थे तभी कर्मचारियों ने ‘इस्तीफा दो’ के नारे लगाए. यहाँ कई फैक्ट्रियों के कर्मचारी भी हड़ताल पर हैं.

Photo by Artem Podrez on Pexels.com

यूरोपीय संघ ने भी बेलारूस के हालिया चुनावों को मान्यता नहीं दी है जिनमें लुकाशेंको को 80 प्रतिशत मत मिले हैं. उनकी प्रतिद्वंदी 37 वर्षीय अध्यापिका और एक माँ स्वेतलाना तिखानोव्सना देश छोड़कर चली गयी हैं. उन्होंने अपने ऊपर बदले की कार्यवाही की आशंका जतायी थी. उनके पति जो कि एक ब्लॉगर हैं, उन्हें सरकार की आलोचना करने के आरोप में लुकाशंको प्रशासन ने जेल में बंद किया है. स्वेतलाना ने पड़ोसी देश लिथुआनिया से जारी एक विडियो संदेश में कहा है कि वह देश का नेतृत्व करने को तैयार हैं. स्वेतलाना ने चुनाव परिणामों को धोखा कहा है. उन्होंने कहा है कि जनता का बहुमत उनके साथ है. दूसरी तरफ लुकाशेंको ने स्वेतलाना को ‘छोटी बच्ची’ बताते हुए आरोप लगाया कि वह ‘विदेशों ताक़त’ की कठपुतली बन गई हैं. उन्होंने प्रदर्शनकारियों को “चूहा” भी कहा.

अंतराष्ट्रीय जगत का रवैया

सरकार विरोधी प्रदर्शनों के बीच यूरोपीय संघ ने इस मुद्दे पर आपात बैठक बुलाई है. बैठक में चर्चा होगी कि इस संकट पर क्या रुख अपनाया जाएगा. यूरोपीय संघ और यूरोप के अधिकांश देश प्रदर्शनकारियों के पक्ष में हैं. जर्मनी के राष्ट्रपति फ्रांक वाल्टर श्टाइनमायर और फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने प्रदर्शनकारियों पर बल प्रयोग के लिए बेलारूस की सरकार की आलोचना की है. जर्मनी इस समय यूरोपीय संघ की प्रेज़िडेन्सी परिषद का अध्यक्ष है और वह मौजूदा संकट में मध्यस्थता करने की कोशिश कर रहा है.

वहीँ लुकाशेंको रूस की तरफ मदद के लिए गए हैं. उन्होंने ने यह आरोप लगा कर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन से मदद मांगी कि लोगो के विरोध के पीछे अमेरिका की अगुवाई वाले सैन्य संगठन, नेटो का हाथ है. पुतिन ने उनकी मदद करने की हामी भर दी है. लुकाशेंको के अनुसार पुतिन ने बेलारूस को बाहरी सैन्य ख़तरे की स्थिति में सुरक्षा देने का आश्वासन दिया है.

क्या है इतिहास

बेलारूस ( जिसका शाब्दिक अर्थ है सफ़ेद रूसी ) सोवियत संघ का एक सदस्य था. 25 अगस्त, 1991 को बेलारूस सोवियत संघ से आज़ाद हुआ. इसके बाद बेलारूस ने अपना नया संविधान बनाया. 1994 में आए संविधान में राष्ट्रपति शासन प्रणाली अपनाई गई. इसी व्यवस्था के तहत जून 1994 को बेलारूस में हुआ पहला राष्ट्रपति चुनाव और अलेग्ज़ेंडर लुकाशेंको राष्ट्रपति चुने गए.तब से आज तक वे ही सत्ता पर क़ाबिज़ हैं. इस बीच बेलारूस में राष्ट्रपति चुनाव होते रहे मगर हर बार अलेग्ज़ेंडर लुकाशेंको ही चुनकर आए. उन पर तानाशाह होने और चुनाव में गड़बड़ी करने के आरोप लगते रहे हैं.

अलेग्ज़ेंडर लुकाशेंको साल 1994 से सत्ता में हैं जबकि मुख्य विपक्षी उम्मीदवार स्वेतलाना तिखानोव्सना एक 37 वर्षीय महिला हैं जिनके पति सरहेई तसिख़ानोउस्की राष्ट्रपति की नीतियों का विरोध करने की वजह से जेल में हैं. पति को गिरफ़्तार किये जाने स्वेतलाना ने अपने पति की जगह राजनीति में क़दम रखा.स्वेतलाना एक शिक्षिका रह चुकी हैं और एक बच्चे की माँ हैं.