अफ़्रीकी देश माली में सैन्य तख़्तापलट, राष्ट्रपति बंधक, संसद भंग
पश्चिमी अफ़्रीकी देश माली में सेना के विद्रोही सैनिकों ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को बंधक बना लिया है. राष्ट्रपति इब्राहिम बाउबकर कीता ने इस घटना के बाद अपने पद से त्यागपत्र दे दिया है और देश की संसद को भंग कर दिया है. मंगलवार देर रात को तेजी से हुए एक घटनाक्रम में सेना ने राष्ट्रपति इब्राहिम बाउबकर कीता, प्रधानमंत्री बाउबो सिसे, वरिष्ठ मंत्रियों, सरकार और सेना के कुछ बड़े अधिकारियों को सेना ने बंधक बना लिया. इससे पहले विरोधी सैनिकों ने बड़े पैमाने पर गोलियां भी चलाई. खबरों के अनुसार इस विद्रोह में सेना का एक बड़ा भाग शामिल है. विद्रोही सैनिकों ने स्वयं को “नेशनल कमेटी फॉर दी साल्वेशन ऑफ दी पीपल (National Committee for the Salvation of the People)” कहा है. जिसका अर्थ – “लोगों को बचाने के लिए राष्ट्रिय समिति” है. अल जज़ीरा की खबर के अनुसार सैनिकों ने कहा है कि वे उचित समय पर “चुनाव” करवाएंगे.

माली में विद्रोह आर्मी का केंद्र रहे काटी शहर से शुरू हुआ. यहां पर सैनिक शास्त्रागार में घुस गए और हथियारों पर कब्जा कर लिया इसके बाद उन्होंने सीनियर मिलिट्री अधिकारियों को बंदी बना लिया. फिर सैनिकों ने राजधानी बामको पर अधिकार कर लिया. बमाको छावनी में बदल चुका है, यहां भारी संख्या में सैनिक दिखाई दे रहे हैं. ताजा तस्वीरों के मुताबिक, विद्रोही सैनिक हथियार लेकर सरेआम सड़कों पर दौड़ रहे हैं. आम नागरिकों को भी डराया धमकाया जा रहा है और उन्हें घर में ही रहने को कहा जा रहा है.
वहीँ दूसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय और अफ़्रीकी देशों ने इस घटना की निंदा की है और बंधकों की सुरक्षा की अपील की है. अमेरिका और रूस ने कहा है कि उनकी माली के हालात पर नजर है.
क्या है विरोध की वजह
राष्ट्रपति इब्राहिम बाउबकर कीता के पद से हटने की मांग को लेकर पिछले कई महीनों से प्रदर्शन चल रहे हैं. माली की जनता बढ़ते भ्रष्टाचार को लेकर भी सरकार से नाराज चल रही है. जनता का असंतोष मई से बढ़ने लगा जब देश की शीर्ष संवैधानिक अदालत ने एक विवादित चुनाव के परिणामों को पलट दिया जिससे कीता की पार्टी के लिए संसद में अधिकांश खाली सीटों पर कब्जा करने का मार्ग प्रशस्त हो गया. पिछले कुछ सालों से माली की जनता खासकर युवाओं में गरीबी, रोजगार की कमी और भ्रष्टाचार को लेकर निराशा भर गई है.
समस्या पुरानी है
माली कभी फ़्रांस का उपनिवेश था जो 22 सितंबर 1960 को फ़्रांस से स्वतंत्र हुआ. यहाँ काफी समय से राजनैतिक अस्थिरता का माहौल है. संयुक्त राष्ट्र और रूस बीते 7 साल से माली में राजनीतिक स्थिरता लाने की कोशिश कर रहे हैं. माली के राष्ट्रपति को लोकतांत्रिक रूप से चुना गया था और उन्हें फ्रांस और अन्य पश्चिमी देशों से व्यापक समर्थन प्राप्त है. इससे पहले 2012 में भी यहां सैन्य तख्तापलट हुआ था. तब से यहाँ फ़्रांस सैन्य रूप से शामिल रहा है.
संयुक्त राष्ट्र का एक मिशन जिसे MINUSMA के रूप में जाना जाता है, अप्रैल 2013 से माली में है. मार्च 2020 तक, इसके बैनर तले 13,500 से अधिक सैन्य कर्मियों को माली में तैनात किया गया था. जनवरी 2012 में माली के सरकारी बलों और टुआरेग विद्रोहियों के बीच लड़ाई भड़क जाने के बाद यह मिशन शुरू किया गया था. तीन साल बाद वर्ष 2015 में माली की सरकार और दो विभिन्न प्रथकतावादी गुटों ने शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. टुआरेग विद्रोही माली के उत्तर में एक अलग देश की मांग कर रहे हैं.