वेस्ट बैंक पर इज़रायल नरम ? क्या है अरब इज़रायल विवाद की पूरी कहानी
पिछले दिनों इज़रायल और संयुक्त अरब अमीरात के बीच हुए समझौते ने अरब जगत में एक नए अध्याय की शुरुआत की है. अभी तक अरब देशों में केवल मिस्र और जॉर्डन के साथ ही इजरायल के राजनयिक सम्बन्ध हैं. मिस्र ने 1979 में इजरायल के साथ शांति समझौता किया था उसके बाद 1994 में जॉर्डन ने ऐसा समझौता किया. बताया जाता है कि इस समझौते के लिए इज़रायल वेस्ट बैंक भूमि पर यहूदी बस्ती बसाए जाने की अपनी विवादास्पद योजना को अस्थाई रूप से रोकने पर राज़ी हो गया है. फ़िलिस्तीनी इस भूमि पर अपना दावा करते हैं.
क्या है वेस्ट बैंक विवाद
वेस्ट बैंक या पश्चिमी तट, इज़राइल के पूर्व में इज़राइल-जॉर्डन सीमा पर स्थित लगभग 6,555 वर्ग किमी. के भू-भाग में फैला एक क्षेत्र है. चूँकि यह क्षेत्र जॉर्डन नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है इसलिए इसे पश्चिमी तट या वेस्ट बैंक के नाम से जाना जाता है. किसी समय आटमन साम्राज्य का हिस्सा रहे और बाद में ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन रहे इस क्षेत्र का इतिहास भी दिलचस्प है.
वेस्ट बैंक को समझने से पहले समझना होगा इज़रायल और फ़िलिस्तीन को. लेबनान, सीरिया, जॉर्डन और मिस्र के बीच के क्षेत्र को साल 1947 से पहले फ़िलिस्तीन कहा जाता था और यह ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा था. इस क्षेत्र में मुस्लिम, यहूदी और ईसाई तीनों धर्म के लोग रहा करते थे. धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण शहर येरूसलम भी इस इलाक़े में स्थित है.
यहूदियों के लिए यह इलाक़ा बेहद पवित्र माना जाता है. द्वितीय विश्व युद्ध के समय जब पूरी दुनिया में यहूदी अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों से परेशान थे तो उन्होंने एक नया “यहूदी देश” बनाने की सोची.
अब ज़रा पीछे चलते हैं , साल 1917 में जब प्रथम विश्व युद्ध चल रहा था और ऑटमन साम्राज्य हारने की कगार पर था, तभी ब्रिटेन के विदेश मंत्री सर आर्थर बैलफॉर ने कहा कि हम यहूदियों को युद्ध खत्म होने के बाद फिलिस्तीन में बसाएँगे. उन्होंने कहा कि हम यहूदियों के लिए एक राष्ट्र बनाने में उनकी मदद करेंगे. इस घोषणा को बैलफॉर डिकलेरेशन के नाम से जाना जाता है. यहूदियों को पहली बार अपने लिए एक देश का सपना सच होता दिखा.
पहले विश्व युद्ध के बाद बड़ी संख्या में फिलिस्तीन में यहूदी शरण लेने लगे, यहां इस समय यहूदियों की कुल आबादी सिर्फ 3 फीसदी थी, लेकिन अगले तीस साल में यह बढ़कर 30 फीसदी तक पहुंच गई. एक तरह से यहूदियों ने इसे अपना घर मान लिया और ब्रिटेन का वादा तो पहले से ही था. इसी बीच दूसरा विश्व युद्ध हो गया. जर्मनी से लाखों यहूदी फिलिस्तीन की ओर भागने लगे, क्योंकि उन्हें लगने लगा था अगर हिटलर के प्रकोप से जीवित रहना है तो हमें अपने ही देश जाना होगा.
लेकिन तब तक फ़िलिस्तीन में मुस्लिम अधिक थे और अभी तक यह आधिकारिक रूप से देश बना भी नहीं था. ब्रिटेन ने फ़िलिस्तीन को 1947 में आज़ादी देने की बात की. दिक्कत ये हुई कि दोनों समुदायों मुस्लिम और यहूदियों ने इसे अपना अपना देश मान लिया और झगड़ा शुरू हो गया और यह मामला संयुक्त राष्ट्र में पहुँचा.
1947 में यूएन ने प्रस्ताव दिया कि इस जगह को दो देशों में बांट दिया जाये – एक हिस्सा था यहूदी राज्य और एक था अरब राज्य. और इस तरह साल 1948 में इजराइल एक देश बनकर आ गया. तब यहाँ लगभग साढ़े छः लाख यहूदी थे. लेकिन अभी भी एक बड़ी समस्या थी येरूसलम क्योंकि यहां आधी आबादी यहूदियों की थी और आधी आबादी मुसलमानों की. इसलिए यूएन ने फैसला दिया कि येरूसलम को अंतर्राष्ट्रीय सरकार के द्वारा चलाया जाएगा. इस समय तक इज़रायल राष्ट्र को जो ज़मीन दी गयी थी उसमें यहूदी और मुस्लिम दोनों बस्तियाँ थीं.
लेकिन इज़रायल के आस पास के देशों को यह फ़ैसला रास नहीं आया. एक ही साल के अंदर 1948 में अरब देशों मिस्र, जॉर्डन, इराक़ और सीरिया ने नए बने देश इज़रायल पर हमला कर दिया. इसे पहला अरब इज़रायल युद्ध भी कहा जाता है. यह युद्ध अरब देशों के लिए घातक साबित हुआ. नए बने देश इज़रायल ने न सिर्फ़ अदम्य साहस दिखाकर अरब सेना से अपने देश को बचाया बल्कि जो भूमि फ़िलिस्तीन राष्ट्र के लिए निर्धारित थी उस पर भी क़ब्ज़ा कर लिया. यही नहीं इज़रायल ने आधे येरूसलम पर भी क़ब्ज़ा कर लिया.
अब आइ असली मुसीबत. इज़रायल और इज़रायल के क़ब्ज़े वाली ज़मीन में रहने वाले अरब मुस्लिम शरण के लिए भागने लगे. चूँकि उनको जो ज़मीन फ़िलस्तीन देश के लिए मिलीं थी उस पर तो इज़रायल ने क़ब्ज़ा कर लिया था. सिर्फ़ दो इलाक़े ऐसे थे जहाँ पर वे लोग शरण पा सके- गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक. 1948 के युद्ध में वेस्ट बैंक पर जॉर्डन का नियंत्रण हो गया था.
साल 1967 में एक बार फिर से अरब देशों और इज़रायल में युद्ध हुआ. यह युद्ध छः दिवसीय युद्ध के नाम से जाना जाता है. इस युद्ध में अरब देशों की हार के बाद इज़रायल ने फिर से वेस्ट बैंक और गाजा पर क़ब्ज़ा कर लिया. 1967 में इजराइल ने येरूसलम के काफी हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया. धीरे-धीरे इजराइल के लोग लगभग सरे येरुसलम पर कब्ज़ा कर चुके हैं. इजराइल ने येरूसलम को अपनी राजधानी घोषित कर दिया जिसे अभी भी कई देश मान्यता नहीं देते हैं.

वेस्ट बैंक का मुद्दा
अब फिर से आते हैं वेस्ट बैंक में. वेस्ट बैंक में पहले बहुत थोड़े यहूदी थे लेकिन धीरे धीरे यहाँ इज़रायल ने यहाँ यहूदी बस्तियां बसानी शुरू कर दीं. आलम यह है कि अब इस इलाके में यहूदियों की संख्या बहुत अधिक बढ़ गयी है. फ़लस्तीनी वेस्ट बैंक को अपने भविष्य के देश के एक हिस्से के तौर पर देखते हैं लेकिन युद्ध के बाद इसराइल ने वहाँ बस्तियाँ बना दी जिससे विवाद बढ़ गया है. दुनिया के अधिकतर देशों ने इज़राइल द्वारा बसाई गईं इन बस्तियों को अमान्य घोषित किया है. साल 1949 के जिनेवा समझौते के तहत यह प्रावधान है “एक विजेता देश अपने लोगों को उस इलाके में नहीं बसायेंगे जो उन्होंने युद्ध में जीता हो”. अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (International Criminal Court) के अनुसार ऐसा करना एक युद्ध अपराध है. अब यहाँ 26 लाख फिलिस्तीनी रहते हैं. इसके अतिरिक्त यहाँ 4 लाख इजराइली बस गये हैं. यहूदियों का मानना है कि इस भूभाग पर उनको बाइबिल में ही जन्मसिद्ध अधिकार मिला हुआ है.
इसी कारण यह एक विवादित मुद्दा है, फिलिस्तीनी लोगों का कोई अलग देश नहीं है. उनका लक्ष्य है कि इस भूभाग में फिलिस्तीन देश स्थापित किया जाए जिसकी राजधानी पूर्वी जेरुसलम हो. इस कारण यहूदियों और फिलिस्तीनियों में झगड़ा होता रहता है. फिलिस्तीनियों का मानना है कि 1967 के बाद वेस्ट बैंक ने जो यहूदी बस्तियाँ बसायीं, वे सभी अवैध हैं. अरब देशों और दुनिया के अन्य देशों का भी यह मानना है कि यदि इज़रायल को दोस्ती करनी है तो उसे सबसे पहले वेस्ट बैंक से अपना कब्ज़ा हटाना होगा.
फिलिस्तीन का भविष्य
फिलिस्तीन वेस्ट बैंक और गाज़ा में खोये अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहा है. गाज़ा में रहते तो फिलिस्तीनी मुस्लिम हैं पर यहाँ इज़रायली सैनिको का नियंत्रण है. 1967 में किया गया कब्जा 25 सालों तक चला लेकिन दिसंबर 1987 में गाजा के फिलिस्तीनियों के बीच दंगों और हिंसक झड़प के कारण और इजरायली सैनिकों पर हिंसा करने से एक विद्रोह पैदा हो गया. गाज़ा के लोगों ने इज़रायली सैनिको के विरोध में लामबंद होना शुरू कर दिया. इसी बीच दुनिया भर में फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) फिलिस्तानियों के प्रतिनिधि के रूप में सामने आया. 1991 के पहले इज़रायल और संयुक्त राज्य अमेरिका इसे एक आतंकवादी संगठन मानते थे. इसके नेता यासिर अराफ़ात थे. अराफात के नेतृत्व में उनके संगठन ने शांति की जगह संघर्ष को बढ़ावा दिया और इजरायल हमेशा उनके निशाने पर रहा.
फिर साल 1993 में ओस्लो समझौता हुआ जिसके अंतर्गत इजरायल और फिलिस्तीन मुक्ति संगठन ने एक-दूसरे को आधिकारिक मान्यता देने तथा हिंसक गतिविधियों को त्यागने पर सहमति प्रकट की. ओस्लो समझौते के तहत एक फिलिस्तीनी प्राधिकरण की भी स्थापना की गई थी और इस प्राधिकरण को गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक के भागों में सीमित स्वायत्तता ही प्राप्त हुई थी. ऐसा लगा कि सब ठीक हो गया लेकिन ऐसा हुआ नहीं. साल 2000 की शुरूआत में, पीएलओ और इजरायल के बीच वार्ता नकाम होने के कारण हिंसा अपने चरम रुप में पहुंच गयी.
अब आते हैं हमास पर. साल 1987 में मुस्लिम भाईचारे की मांग हेतु फिलिस्तीन में ‘हमास’ नाम से एक हिंसक संगठन का गठन किया गया. उसके बाद से ये फ़लस्तीनी क्षेत्रों से इसराइली सेना को हटाने के लिए संघर्ष चला रहा है. हमास इसराइल को मान्यता नहीं देता और यह पूरे फ़लस्तीनी क्षेत्र में इस्लामी राष्ट्र की स्थापना करना चाहता है. यासिर अराफ़ात का फ़लस्तीनी प्राधिकरण भी हमास को एक बड़ी चुनौती के तौर पर देखा करता था. अब गाजा पर हमास का भी अधिकार है.
साल 2014 में हमास और इजरायल के बीच ज़बरदस्त जंग हुई. इजरायल ने हमास को बहुत नुकसान पहुँचाया हमास को अंततः हार माननी पड़ी लेकिन गाज़ा से उनका प्रभाव काम नहीं हुआ है. जब से फिलिस्तीन के हमास ग्रुप ने गाज़ा पर कब्ज़ा किया, तब से वो इजराइल पर हमले कर रहे हैं.
फिलिस्तीन की मांग है कि इज़राइल वर्ष 1967 से पूर्व की अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं तक सीमित हो जाए और वेस्ट बैंक तथा गाजा पट्टी में स्वतंत्र फिलिस्तीन राज्य की स्थापना करे. साथ ही इज़राइल को किसी भी प्रकार की शांति वार्ता में शामिल होने से पूर्व अपने अवैध विस्तार को रोकना होगा. फिलिस्तीन पूर्वी येरुशलम को स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र की राजधानी बनाना चाहता है.
हालाँकि इज़रायल इसमें से किसी भी मांग को मानाने को तैयार नहीं है.