अफगानिस्तान और तालिबान के बीच शांति वार्ता शुरू, अमेरिका करेगा मध्यस्थता
अफगानिस्तान सरकार और तालिबान के बीच क़तर में शांति वार्ता शुरू हो गई है. क़तर की राजधानी दोहा में हो रही इस बैठक में अफ़ग़ानिस्तान की तरफ़ से आधे मंत्रिमंडल के प्रमुख और अफगानिस्तान में राष्ट्रपति के बाद दूसरे सबसे ताकतवर नेता अब्दुल्ला अब्दुल्ला, तालिबान के डिप्टी मुल्ला अब्दुल ग़नी बरदार और अमेरिका के विदेश मंत्री माईक पोम्पियो शामिल हो रहे हैं.
आल जज़ीरा की खबर के अनुसार अब्दुल्ला ने एक स्थिर और शान्त अफगानिस्तान की वकालत की है वहीं तालिबान ने एक “इस्लामिक राज्य” की माँग को दोहराया है. सम्भव है कि इस समझौते में अफगानिस्तान का रोडमैप एक स्थिर, स्वतन्त्र, विकसित इस्लामिक राष्ट्र के रूप में निकल कर आए. हालाँकि इस व्यवस्था में प्रशासन किस तरह से होगा यह देखना दिलचस्प है.अफगान सरकार वर्तमान लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था का समर्थन करती है, जबकि तालिबान अपने इस्लामी कानून के संस्करण को देश की शासन प्रणाली के रूप में फिर से तैयार करना चाहता है. अभी तक तालिबान ने लोकतांत्रिक व्यवस्था, महिला अधिकार और शिक्षा जैसे मुद्दों पर अपने पत्ते नहीं खोले हैं.

अफ़ग़ानी सरकार ने वार्ताकारों में पाँच महिलाओं को भी रखा है जो महिलाओं के मुद्दों को इस वार्ता में रखेंगे.तालिबान ने अपने 1996-2001 के शासन में महिलाओं की सामाजिक समानता का बुरी तरह दमन किया था. इस दौरान महिलाओं को स्कूल जाने, काम करने, राजनीति में भाग लेने या यहां तक कि उनके घर छोड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. उन्हें बुर्के में रहना पड़ता था और घर से बाहर निकलने के लिए पुरुष सदस्य का साथ रहना आवश्यक था.
यह पहली बार है कि तालिबान और अफगानिस्तान सरकार आमने सामने बैठ कर बातचीत करेंगे. इससे पहले फ़रवरी में अमेरिका और तालिबान के बीच एक शांति समझौता हुआ था. इस समझौते के तहत अमेरिका ने कहा था कि वह अफगानिस्तान से अपने सैन्य बल हटा लेगा और बदले में तालिबान अमेरिका और अफगानिस्तान के ऊपर हमले नहीं करेगा. साथ ही तालिबान अफगानिस्तान में शांति बनाए रखने में सहयोग करेगा. समझौते के दूसरे चरण के तहत यह बात रखी गई थी कि तालिबान और अफ़ग़ान सरकार एक दूसरे के युद्ध बंदियों को रिहा करेंगे और फिर मार्च में तालिबान और अफ़ग़ान सरकार शांति के लिए बातचीत करेंगे. लेकिन युद्ध बंदियों को लेकर सहमति न बन पाने के कारण यह बातचीत टल गई थी.
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 2020 के पहले छह महीनों में, अफगानिस्तान में सैकड़ों बच्चों सहित लगभग 1,300 नागरिक हिंसा में मारे गए हैं. तालिबान और अफ़ग़ान सरकार की इस वार्ता से शांति की उम्मीदें तो हैं लेकिन धरातल पर किसी ठोस समझौते का होना बहुत मुश्किल है. दोनों ही पक्ष सैन्य मुद्दों पर पीछे हटने को तैयार नहीं हैं.