अज़रबैजान और आर्मेनिया के बीच छिड़े युद्ध में कूदा तुर्की, ईरान ने की मध्यस्थता की पेशकश
अज़रबैजान और आर्मेनिया के बीच छिड़े युद्ध में तुर्की, ईरान और रूस भी कूद गए हैं. तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने अज़रबैजान का समर्थन करने की घोषणा की है. उन्होंने अजरबैजानी क्षेत्रों आर्मेनिया के सैन्य हमले की कड़ी निंदा की और कहा कि तुर्की अज़रबैजान की पूरी सहायता करेगा. उन्होंने आर्मेनिया को क्षेत्र की शांति के लिए सबसे बड़ा ख़तरा बताया है.
रूस जो दोनों ही देशों को हथियार बेचता है, ने दोनों देशों से संयम बनाए रखने की अपील की है. हालाँकि रूस पारंपरिक रूप से आर्मीनिया का मित्र राष्ट्र रहा है.
ईरान ने दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करने के लिए मध्यस्थ की भूमिका निभाने की पेशकश की है. ईरान की सीमा अज़रबैजान और आर्मीनिया दोनों से ही सटी है.

युद्ध को लेकर आर्मेनिया ने कहा कि वह अपने पड़ोसी अज़रबैजान द्वारा रविवार को लॉन्च किए गए मिसाइल हमलों का जवाब दे रहा था, वहीं अजरबैजान ने संघर्ष के लिए आर्मेनिया को दोषी ठहराया है. सीएनएन ने आर्मेनिया द्वारा समर्थित “रिपब्लिक आफ अर्कश” जो कि एक स्वयंभू संगठन है और जिसका विवादित नागोरनो कोराबाख पर क़ब्ज़ा है के एक नेता के हवाले से बताया है कि अज़रबैजान की सेना ने उनसे कुछ इलाक़े छीन लिए हैं.
नागोरनो कोराबाख विवाद
दोनों देशों के बीच संघर्ष का लम्बा इतिहास रहा है. अज़रबैजान के बीचोंबीच नागोरनो कोराबाख इलाक़ा है. जिस में एथिनिक आर्मेनियन ( ऐसे लोग जिनके पूर्वज आर्मेनिया से थे) लोग रहते हैं और एक स्वतंत्र देश की माँग करते हैं. इन्हें आर्मेनिया का समर्थन हासिल है.
आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच 1980 के दशक के अंत में संघर्ष की शुरुआत हुई थी और 1991 में सोवियत संघ के विघटन पर इसने युद्ध का रूप ले लिया था,साल 1994 में युद्धविराम से पहले इस लड़ाई में 30 हज़ार लोग मारे गए थे. आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच 1994 में युद्ध खत्म होने के बाद से ही नागोरनो कोराबाख इलाक़े पर आर्मीनियाई अलगाववादियों का कब्जा है. वे लोग इसे “रिपब्लिक आफ अर्कश” कहते हैं. साल 2016 में भी दोनों देश इस मुद्दे पर युद्ध के मुहाने पर आ गए थे तब भी दोनों देशों के लगभग तीस सैनिक मारे गए थे. संयुक्त राष्ट्र और विश्व के कई देश नागोरनो कोराबाख को अज़रबैजान का हिस्सा मानते हैं.