भीषण हुई अज़रबैजान और आर्मेनिया की लड़ाई, फ़्रांस और तुर्की भी आमने सामने
अज़रबैजान और आर्मेनिया की लड़ाई और भीषण हो गयी है. अब इस लड़ाई में फ़्रांस और तुर्की भी आमने सामने आ गए हैं. तुर्की इस युद्ध में खुल कर अज़रबैजान का साथ दे रहा है है जबकि फ़्रांस ने तुर्की पर युद्ध को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है. दोनों देश नागोर्नो-करबाख के लिए लड़ रहे हैं जो अजरबैजान के अंदर एक विवादित क्षेत्र है और जातीय अर्मेनियाई लोगों द्वारा नियंत्रित किया जाता है. यह 1990 के दशक में एक युद्ध में अजरबैजान से अलग हो गया लेकिन इसे किसी भी देश द्वारा एक स्वतंत्र गणराज्य के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं है. संयुक्त राष्ट्र भी इसे अज़रबैजान का हिस्सा मानता है. हालाँकि इन जातीय अर्मेनियाई लोगों की सत्ता को आर्मेनिया की सरकार का खुला समर्थन है.

तुर्की की सरकारी समाचार एजेंसी एनाडोलू की रिपोर्ट के अनुसार, दोनों देशों के बीच संघर्ष शुरू होने के बाद से अज़रबैजान के सैनिकों द्वारा कम से कम 2,300 अर्मेनियाई सैनिकों को मार दिया गया या घायल कर दिया गया है. आर्मेनिया ने इन दावों का खंडन किया है. उधर युद्ध शांत होने के आसार नहीं दिख रहे हैं. अज़रबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव ने एक टेलीविज़न सन्देश में कहा है “हमारी केवल केवल एक शर्त है, अर्मेनियाई सशस्त्र बलों को बिना शर्त, पूरी तरह से, और तुरंत हमारी भूमि छोड़ना चाहिए”.
अमेरिका, ईरान, रूस, फ्रांँस और जर्मनी समेत कई अन्य देशों ने नागोर्नो-काराबाख स्वायत्त क्षेत्र को लेकर आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच को तत्काल समाप्त करने, युद्ध विराम के नियमों का पालन करने और जल्द-से-जल्द इस मामले को वार्ता के माध्यम से सुलझाने का आह्वान किया है. वहीं अज़रबैजान के सहयोगी तुर्की तथा पाकिस्तान ने अर्मेनिया को इस हमले के लिये ज़िम्मेदार ठहराया है और अज़रबैजान के लिये ‘पूर्ण समर्थन’ का वादा किया है.
अज़रबैज़ान एक मुस्लिम बहुल देश है और इसकी लगभग 97% आबादी मुस्लिम है लेकिन अजरबैजान का संविधान धर्मनिरपेक्ष है और देश की सभी प्रमुख राजनीतिक ताकतें धर्मनिरपेक्षतावादी हैं. वहीं आर्मीनिया ईसाई बहुलता वाला देश है और इसके 98% लोग आर्मीनियाई नस्ल के लोग हैं.