विचार | दिल्ली में दंगो और एक प्रधानमंत्री की हत्या के 36 साल
दिल्ली में सिख नरसंहार को आज 36 साल हो गए है, ये नरसंहार नवंबर 1984 में इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद शुरू हुए, और इंदिरा गाँधी की हत्या का मुख्या कारण ऑपरेशन ब्लू स्टार को माना जाता है.
1973 में अकालियों ने आनंदपुर प्रस्ताव प्रस्तुत किया जिसमें उन्होंने सिख राष्ट्र की मांग की, क्योंकि सिखों को अलग सिख राज्य चाहिए था, जिसमें वे स्वतंत्र रूप से शासन कर सके पर इसका मतलब देश के संघीय ढांचे को तोड़ना था, पर सिखों की अभी भी स्वतंत्र राज्य की मांग पूरी नहीं हुई क्योंकि कुछ पानी के बंटवारे का विवाद था और चंडीगढ़ अभी भी हरियाणा के साथ बांटना पड़ रहा था, इसलिए आनंदपुर प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया.1982 में खालिस्तान की मांग और तेज़ हो गयी और सिख निरंकारियों के खिलाफ हो गए और इसी दौरान जर्नेल सिंह भिंडरेवाले का उदय हुआ, उन्होंने हिन्दुओं को और निरंकारियों का उपहास किया और माना जाता है कि बहुत सी हस्तियों कि हत्याओं में उनका हाथ था .

पंजाब में अकाली दल की सरकार गिर गयी और कांग्रेस सत्ता में आ गयी, सतश्री अकाली दल भारत की दूसरी सबसे पुरानी राजनितिक पार्टी है, अकाली दल की सरकार गिरने के बाद भिंडरवाले का अराजकता पूर्ण प्रभाव बढ़ने लगा और वो लोगो को हिन्दुओं और निरंकारियों के खिलाफ भड़काने लगे, यहाँ पर ये जानना बहुत ज़रूरी है कि सिखों का नेतृत्व लंदन से जगजीत सिंह कर रहे थे और वहां से बार बार अलग राज्य बनाने कि मांग उठ रही थी.
सरकार ने भिंडरवाले पर नकेल कसने के लिए गिरफ़्तारी के आदेश दिए तभी उन्हें अकाली दल के अध्यक्ष हरचंद सिंह ने गिरफ़्तारी से बचने के लिए स्वर्ण मंदिर में रुकने का आमंत्रण दिया और उन्होंने उस पवित्र स्वर्ण मंदिर को हथियारों से लैस सशस्त्रगार बना दिया और सिखों को हिन्दुओं के खिलाफ भड़का दिया और इसी क्रम में 1983 में एक बस में से हिन्दुओं और निरंकारियों को उतार कर उनकी हत्या कर दी, और बढ़ते दंगो को रोकने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने ऑपरेशन ब्लू स्टार पर अपनी सहमति दी और 1 जून 1984 से 8 जून 1984 तक ऑपरेशन ब्लू स्टार चला जिसमें कई सिख मारे गए और 6 जून को भिंडरवाले भी मारे गए और सभी सिखों को स्वर्ण मंदिर से बाहर निकाला गया.
ऑपरेशन ब्लू स्टार के ठीक 4 महीने बाद इंदिरा गाँधी की हत्या उन्हीं के अंगरक्षकों सतवंत सिंह और बेअंत सिंह द्वारा 31 अक्टूबर को उन्हीं के निवास में की गयी और उन्हें ऐम्स ले जाया गया जहाँ डॉक्टर उन्हें बचाने में असफल रहे और उसके बाद देश भर में सिखों के खिलाफ दंगे भड़क उठे, हज़ारों जाने गयी, कितने सिखों को मार दिया गया और कितनों को ज़िंदा जला दिया गया और महिलाओं के साथ बहुत बर्बरता पूर्ण व्यवहार हुआ और देशभर में असंतोष फ़ैल गया और आखिरकार 3 नवंबर को दंगे कुछ थमना शुरू हुए.
दंगे तब भी थे और दंगे आज भी हैं बस सरकार बदली हैं और इन दंगों की आग में आम आदमी ही हमेशा जलता रहा है. इसलिए ये जिम्मेदारी हमारी बनती है कि हम आपस में सौहाद्र बनाये रखें.

साभार : निहारिका रानी
उत्तराखंड के हल्द्वानी में रहने वाली निहारिका, पिछले कई वर्षों से स्वतंत्र लेखन कर रही हैं. यहाँ प्रस्तुत विचार उनके अपने हैं.