कितना जानते हैं आप स्वेज नहर के बारे में ? इतिहास और महत्व

पिछले दिनों स्वेज नहर में जापान के एक जहाज़ के फँस जाने से सारी दुनिया में हलचल मच गई थी. जहाज के फंसने की वजह से दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण जलमार्गों में से एक अवरुद्ध हो गया था और समुद्री व्यापार के लिहाज से एक दिन में अरबों डॉलर का कारोबार थम गया. आलम यह था कि जापानी जहाज़ एवर ग्रीन के निकलने का इंतजार 420 से अधिक जहाज कर रहे थे ताकि वे जलमार्ग से गुजर सकें.
लेकिन ऐसा क्या है इस नहर में जिसने पूरी दुनिया के समुद्री व्यापार को एक तरह से रोक कर रख दिया.
क्यों महत्वपूर्ण है
स्वेज नहर लाल सागर को भूमध्य सागर से जोड़ती है. इस नहर के कारण यूरोप से एशिया और पूर्वी अफ्रीका के बीच का रास्ता सीधा हो गया है और इससे लगभग 6,000 मील की दूरी की बचत होती है. स्वेज नहर के निर्माण से पहले एशिया से यूरोप और अमेरिका जाने वाले जहाज़ों को पूरे अफ्रीका महाद्वीप का चक्कर लगा कर जाना पड़ता था. लेकिन बाद अफ़्रीका और एशिया के बीच की भूमि को काट कर यह नहर बना दी गई. स्वेज नहर बन जाने से पूर्वी अफ्रीका, ईरान, अरब, भारत, पाकिस्तान, श्री लंका, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों का यूरोप और अमेरिका से सीधा रास्ता बन गया. इस नहर की वजह से जहाँ समय कम लगता है वहीँ मालवाहन का खर्च भी कम हो गया.
इस नहर से दुनिया का करीब 10 प्रतिशत व्यापार होता है। यह जलमार्ग तेल के परिवहन के लिए अहम है. रोजाना यहां से लगभग 50 जहाज गुजरते हैं जिन पर 10 बिलियन डॉलर यानी करीब 73 हजार करोड़ रुपये तक का सामान लदा होता है.
इतिहास
इस नहर की परिकल्पना सबसे पहले फ़्रांस के महान योद्धा नेपोलियन बोनपार्ट ने की थी. हालाँकि उसका उद्देश्य इस नहर से युद्ध की स्थिति में फ़ायदा उठाना था. साल 1798 में मिस्र पर हमले के बाद नेपोलियन ने भूमध्य सागर और लाल सागर को जोड़ने वाली एक नहर का सपना देखा था. उसने इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू भी किया और अपनी एक टीम इस स्थान के सर्वे के लिए भेजी, लेकिन टीम द्वारा की गई कुछ तकनीकी ख़ामियों की वजह से यह प्रोजेक्ट नेपोलियन का ड्रीम प्रोजेक्ट बन कर रह गया.
लेकिन फ़्रांसीसी इस नहर की उपयोगिता जानते थे. साल 1854 में फ्रांस के एक राजनयिक फर्डिनांड डि लेसेप्स ने स्वेज नहर की योजना पर काम शुरू किया. साल 1858 में एक कंपनी की स्थापना की गई जिसका नाम यूनिवर्सल स्वेज शिप कैनाल कंपनी था. लेसेप्स ने इसके लिए फ़्रांस की सरकार से वित्तीय मदद ली थी, यह वह समय था जब ब्रिटेन और फ़्रांस के बीच उपनिवेश बनाने की होड़ मची हुई थी. इस कंपनी को 99 साल के लिए नहर के निर्माण और संचालन का काम सौंपा गया.ये नहर 1869 में बनकर तैयार हुई और इसे अंतरराष्ट्रीय यातायात के लिए खोल दिया गया.
इस नहर का प्रबंध पहले “स्वेज कैनाल कंपनी” करती थी जिसके आधे शेयर फ्रांस के थे और आधे शेयर तुर्की, मिस्र और अन्य अरब देशों के. बाद में मिस्र और तुर्की के शेयरों को इंग्लैण्ड ने खरीद लिया.
सन 1888 में एक अंतरराष्ट्रीय समझौते के अनुसार यह नहर युद्ध और शांति दोनों कालों में सब राष्ट्रों के जहाजों के लिए बिना रोकटोक समान रूप से आने-जाने के लिए खोल दी गई. समझौते में तय किया गया कि इस नहर पर किसी एक राष्ट्र की सेना नहीं रहेगी. लेकिन इंग्लैण्ड ने सन 1904 में इसे तोड़ दिया और नहर पर अपनी सेनाएँ बैठा दीं. इंग्लैण्ड ने यह भी नियम बना दिया कि इस नहर से वे ही जहाज़ आ जा सकेंगे जो किसी युद्ध में शामिल नहीं हैं.
सन 1947 में स्वेज कैनाल कंपनी और मिस्र सरकार के बीच यह निश्चय हुआ कि कंपनी के साथ 99 वर्ष का पट्टा रद्द हो जाने पर इसका स्वामित्व मिस्र सरकार के हाथ आ जाएगा. सन 1954 में इंग्लैण्ड की सरकार कुछ शर्तों के साथ नहर से अपनी सेना हटा लेने पर राजी हो गई, यह वो समय था जब मिस्र में इंग्लैण्ड के ख़िलाफ़ आंदोलन चरम पर था. साल 1956 में मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल नासिर ने स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण कर दिया.
स्वेज नहर कंपनी में ज्यादातर शेयर ब्रिटिश और फ्रांस सरकार के थे. नासिर के इस कदम से दोनों देशों में हड़कंप मच गया: ब्रिटेन, फ्रांस और इजराइल ने मिस्र पर हमला कर दिया. हालांकि अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप की वजह से ब्रिटेन और फ्रांस को अपनी सेना वापस बुलानी पड़ी. इसके बाद से नहर पर मिस्र का अधिकार है.