सिलेंडर में ऑक्सीजन कैसे तैयार होती है ?
पिछले कुछ दिनों से कोरोना महामारी को लेकर एक नाम जो बहुत तेजी से चर्चा में आया है उसका नाम है “आक्सीजन”. आक्सीजन सिलेंडरों और उनकी आपूर्ति को लेकर सारा भारत मारा मारा फिर रहा है. लेकिन सांस लेने के लिए आक्सीजन तो आप और हम रोज़ लेते हैं, वो भी एकदम मुफ्त. तो फिर यह आक्सीजन क्या है जिसे सिलेंडरों में भर कर अस्पतालों में पहुंचाना पड़ रहा है.
प्राकृतिक तौर पर ऑक्सीजन हमारे वातावरण में होती ही है. स्वस्थ फेफड़ों वाले लोग आसानी से इस आक्सीजन को ले पाते हैं, इसी को हम सांस लेना कहते हैं. जब हम सांस ले रहे होते हैं तो यही आक्सीजन हमारे नाक या मुहं से हमारे फेफड़ों तक पहुंचती है. लेकिन अगर किसी व्यक्ति के फेफड़े किसी बीमारी से कमज़ोर हो जाएँ जैसे न्यूमोनिया, टीबी, दमा या फिर अब कोरोना, तब बीमार व्यक्ति सीधे आक्सीजन नहीं ले पाता. ऐसे में उसे कृत्रिम तरीके से आक्सीजन दी जाती है. यह काम एक नली द्वारा किया जाता है जो व्यक्ति के नाक और मुंह पर लगायी जाती है और जिसे एक आक्सीजन सिलेंडर से जोड़ा जाता है. यह नली धीरे धीरे आक्सीजन बीमार के फेफड़ों में पहुंचाती रहती है.

ऐसे में आक्सीजन सिलेंडर बहुत महत्वपूर्ण हो जाते हैं. इसीलिए आक्सीजन को इन सिलेंडरों में भर कर रखा जाता है पर यह सब इतना आसान नहीं है. सिलेंडरों में भरी जाने वाली आक्सीजन को मेडिकल आक्सीजन कहा जाता है. मेडिकल ऑक्सीजन तैयार करने की प्रक्रिया इंडस्ट्रियल प्लांट में होती है. इस प्रक्रिया में वातावरण में मौजूद हवा से विभिन्न गैसों से केवल ऑक्सीजन को निकालकर अलग किया जाता है. हमारे आस पास की हवा में ऑक्सीजन लगभग 21% ही होता है, इसके अलावा दूसरी गैसें और धूल भी होती हैं. इसमें में हम केवल आक्सीजन ही लेते हैं. मरीज के लिए एयर सेपरेशन तकनीक से यही ऑक्सीजन अपने शुद्धतम रूप में अलग की जाती है.
इसके बाद ऑक्सीजन को बाकी गैसों से अलग करके द्रव ऑक्सीजन के रूप में जमा करते हैं. इसकी शुद्धता 99.5% होती है. इसे विशाल टैंकरों में जमा किया जाता है. यहां से वे अलग टैंकरों में एक खास तापमान पर डिस्ट्रिब्यूटरों तक पहुंचते हैं. डिस्ट्रिब्यूटर के स्तर पर तरल ऑक्सीजन को गैस के रूप में बदला जाता है और सिलेंडर में भरा जाता है, जो सीधे मरीजों के काम आते हैं.