साल 1915 के आर्मीनियाई नरसंहार को लेकर तुर्की और अमेरिका आमने सामने, क्या है इतिहास ?
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने साल 1915 में तुर्की के आर्मेनियाई लोगों की हत्याओं को जनसंहार कहा है. इस जनसंहार में तुर्की के कई आर्मीनियाई लोगों का सफ़ाया हो गया था. कई इतिहासकार मारे गए लोगों की संख्या पंद्रह लाख तक मानते हैं. माना जा रहा है कि अमेरिका आधिकारिक रूप से आर्मीनियाई नरसंहार को मान्यता दे सकता है. आज तक अमेरिकी अर्मेनियाई समुदाय के दशकों के दबाव के बावजूद किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति ने तुर्की से संबंध खराब होने के डर से इस विषय में बात करने से परहेज़ किया था. लेकिन जो बाइडन का यह एक चुनावी मुद्दा रहा है.

क्या हुआ था 1915 में
ये वो साल था जब तुर्की का प्रसिद्ध और एक समय बेहद शक्तिशाली रहा ऑटोमन साम्राज्य अपने अंतिम दिन गिन रहा था. ऑटोमन साम्राज्य के पतन के बाद ही आधुनिक तुर्की का जन्म हुआ.
ये सब शुरू हुआ जब 1915 में हुए प्रथम विश्व युद्ध में ऑटोमन सेना रूस के हाथों हार गई. ऑटोमन साम्राज्य के मुसलमान तुर्कों ने इसके लिए ईसाई आर्मीनियाई लोगों पर विश्वासघात का आरोप लगाया. बस यहीं से शुरू हो गया इन लोगों पर अत्याचार का सिलसिला. लाखों आर्मीनियाई ईसाइयों को या तो तुर्की से निर्वासित कर दिया गया या फिर जान से मार दिया गया. आर्मीनिया का कहना है कि इस दौर में 15 लाख लोगों की मौत हुई थी. तुर्की ने हमेशा इस दावे को खारिज किया है और इस वजह से आर्मेनिया के साथ उसके रिश्ते तनावपूर्ण रहे हैं. हालांकि तुर्की का कहना है कि इस दौरान क़रीब तीन लाख लोगों की मौत हुई. तुर्की और आर्मेनिया के सम्बद्ध भी इन्ही पुराने घावों की वजह से कभी ठीक नहीं रहे. यही नहीं हाल में अज़रबैजान और आर्मेनिया के बीच हुई लड़ाई में तुर्की ने खुले तौर पर अज़रबैजान का साथ दिया.
मानवाधिकार संगठन हमेशा से कहते आए हैं कि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हिटलर के आदेश पर लाखों यहूदियों की हत्या की दुनियाभर में आज भी चर्चा होती है. मगर पहले विश्व युद्ध के दौरान मारे गए आर्मेनियाई नागरिकों के बारे में बात नहीं होती. तुर्की ने इसके लिए कभी माफ़ी नहीं माँगी और अंतराष्ट्रीय जगत ने भी इसको लेकर कभी कोई बड़ी बात नहीं की. तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैयब अर्दोआन तुर्की के ऑटोमन साम्राज्य को लेकर अक्सर गर्व का अनुभव प्रदर्शित करते देखे गए हैं.
इस कदम से अमेरिका और तुर्की के रिश्तों में और तल्ख़ी आ सकती है. दोनों देशों के सम्बन्धों में वैसे भी कोई गर्मजोशी नहीं है.
ऑटोमन साम्राज्य
ऑटोमन साम्राज्य को उस्मनिया सल्तनत के नाम से भी जाना जाता है. यह एक समय में विश्व का सबसे बड़ा साम्राज्य था. इस साम्राज्य ने करीब सात सौ साल राज किया. इसकी विशालता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह केवल तुर्की ही नहीं बल्कि यूरोप, एशिया, अफ्रीका यानि कई महादेशों में फैला हुआ साम्राज्य था. इसका केंद्र तुर्की था और राजधानी इस्तांबुल. इसलिए इसे तुर्की का साम्राज्य ही कहा जाता है. अपने उत्कर्ष के समय तुर्की सुन्नी मुसलमानों का एकछत्र नेता बन गया था. तब तुर्की का शासक ख़लीफ़ा और सुन्नी मुसलमानों का शीर्ष नेता होता था.
प्रथम विश्वयुद्ध में उस्मानी तुर्क जर्मनों के साथ थे. जर्मनों की हार और अरब में अंग्रेजों द्वारा खदेड़ दिए जाने के बाद इस सल्तनत का अंत हो गया. ख़िलाफ़त यानी ख़लीफ़ा का राज खतम कर दिया गया और कमाल पाशा ने एक उदारवादी तुर्की की नीव रखी.