इज़रायल और हमास के बीच हिंसा जारी, गज़ा में भारी बमवर्षा, कई लोग हताहत

इज़रायल और फ़िलस्तीनी लड़ाकू संगठन हमास के बीच भयंकर संघर्ष जारी है. इज़रायली सेना ने हमास नियंत्रित ग़ज़ा के ऊपर ज़बरदस्त बमबारी की है. खबरों में कहा गया है कि इज़रायली सेना ने पुलिस मुख्यालय और अन्य सुरक्षा केन्द्रों को निशाना बनाया है. इससे पहले इज़रायल ने ग़ज़ा में दो बड़े टावर ध्वस्त कर दिए थे. फ़िलिस्तीनी अधिकारियों के अनुसार अब तक 53 फ़िलस्तीनी मारे गए हैं जिनमें 14 बच्चे शामिल हैं. 300 से अधिक फ़िलस्तीनी घायल हुए हैं.

हमास ने भी इज़रायल के प्रमुख शहर तेल अवीव को निशाना बनाकर बम दागे हैं. इन हमलों में अब तक 6 इज़रायली मारे गए हैं. इज़रायल का कहना है कि पिछले 38 घंटों में फ़लस्तीनी चरमपंथियों ने एक हज़ार से ज़्यादा रॉकेट दागे हैं. इनमें से ज़्यादातर तेल अवीव पर छोड़े गए. इज़रायल का कहना है कि वो अपने हमलों में रॉकेट लॉन्च साइट्स और उन ऊँची इमारतों, घरों और दफ़्तरों को निशाना बना रहा था, जो हमास इस्तेमाल कर रहा है.

बीबीसी की खबर के अनुसार इज़रायल के दक्षिण में बसे शहर अश्कलोन में ग़ज़ा पट्टी की तरफ से दाग़े गए ताज़ा रॉकेट हमलों के कारण बड़ा नुक़सान हुआ है. हमास के विद्रोहियों ने चेतावनी दी है कि वो इस इलाक़े में रहने वालों की जिंदगी “नर्क” कर देंगे और यहाँ रहने वाले लोग इससे डरे हुए हैं. वहीं इज़रायल ने कहा है कि यह तो अभी उसके प्रतिरोध की शुरुआत है और हमास को भारी कीमत चुकानी होगी.

उधर अंतराष्ट्रीय समुदाय ने दोनों पक्षों से शांति बनाये रखने की अपील की है. संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा है कि वे हिंसा को लेकर काफ़ी चिंतित हैं. अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा है कि इज़रायल को अपनी रक्षा करने का अधिकार है, लेकिन फ़लस्तीनी लोगों को अपनी सुरक्षा का अधिकार है.

क्या है येरुशलम विवाद

येरुशलम में यहूदी और मुस्लिम दोनों के ही पवित्र स्थल हैं. 1967 के अरब-इजरायल युद्ध में इजरायल ने इस पर कब्जा कर लिया था. यरुशलम को इजरायल अपनी अविभाजित राजधानी मानता है. जबकि फिलिस्तीनी पूर्वी यरुशलम को भावी राष्ट्र की राजधानी मानते हैं. ये इजरायल को एक देश के रूप में मान्यता नहीं देते हैं. इनका मानना है कि यहूदी मुल्क ने फिलिस्तीनी लोगों की जमीन पर कब्जा जमाया हुआ है. ये शहर सिर्फ धार्मिक रूप से ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि कूटनीतिक और राजनीतिक रूप से भी बेहद अहम है. फिलहाल पूर्वी येरुशलम में इज़रायल का अधिकार है और इज़रायल इसे अपनी राजधानी का हिस्सा मानता है.

येरुशलम के यहूदी इलाके में ही कोटेल या पश्चिमी दीवार है. ये वॉल ऑफ दा माउंट का बचा हिस्सा है. माना जाता है कि कभी यहूदियों का पवित्र मंदिर इसी स्थान पर था. इस पवित्र स्थल के भीतर ही द होली ऑफ द होलीज या यहूदियों का सबसे पवित्र स्थान था. यहूदियों का विश्वास है कि यही वो स्थान है जहां से विश्व का निर्माण हुआ. आज पश्चिमी दीवार वो सबसे नजदीक स्थान है जहां से यहूदी होली ऑफ द होलीज की अराधना कर सकते हैं. यहां हर साल दुनियाभर से दसियों लाख यहूदी पहुंचते हैं और अपनी विरासत के साथ जुड़ाव महसूस करते हैं.

यहां पर एक पठार पर डोम ऑफ द रॉक और मस्जिद अल अक्सा स्थित है. इसे मुस्लिम हरम अल शरीफ या पवित्र स्थान कहते हैं. मुसलमानों का विश्वास है कि पैगंबर मोहम्मद ने मक्का से यहां तक एक रात में यात्रा की थी और यहां पैगंबरों की आत्माओं के साथ चर्चा की थी. यहां से कुछ कदम दूर ही पवित्र पत्थर भी है. मान्यता है कि पैगंबर मोहम्मद ने यहीं से जन्नत की यात्रा की थी. मुसलमान हर दिन हजारों की संख्या में इस पवित्र स्थल में आते हैं और प्रार्थना करते हैं. रमजान के महीने में जुमे के दिन ये तादाद बहुत ज्यादा होती है. मस्जिद अल अक्सा इस्लाम का तीसरा सबसे पवित्र स्थल है. इसका प्रबंधन एक इस्लामिक ट्रस्ट करती है जिसे वक्फ कहते हैं.

संघर्ष की शुरुआत

पिछले शुक्रवार को रमज़ान का आख़िरी ज़ुमा था और इस दिन बड़ी संख्या में फ़लिस्तीनी मुसलिम मसजिद अल अक्सा में इबादत के लिए इकट्ठा हुए थे. इस दिन फ़लिस्तीनियों और इज़रायल पुलिस के बीच संघर्ष हुआ. दूसरी ओर, इज़रायल के लोग यानी यहूदी भी सोमवार को येरूशलम डे मनाने के लिए इकट्ठा हुए थे. इस दिन यहूदी समुदाय के लोग ओल्ड सिटी यानी पुराने शहर के चारों ओर मार्च निकालते हैं और इसके बीच में कई मुसलिम बस्तियां भी आती हैं. अल अक्सा मसजिद इसी ओल्ड सिटी में स्थित है.पुलिस ने सोमवार को यहूदियों और फ़लिस्तीनियों के बीच किसी तरह के टकराव को रोकने के लिए येरूशलम डे के मार्च के रूट में बदलाव भी किया. लेकिन ऐसा न होने पर गाज़ा पट्टी में सक्रिय हमास की ओर से येरूशलम पर हमला कर दिया गया. बदले में इज़रायल ने ग़ज़ा पर हमला शुरू कर दिया.

इज़रायल फिलिस्तीन विवाद

लेबनान, सीरिया, जॉर्डन और मिस्र के बीच के क्षेत्र को साल 1947 से पहले फ़िलिस्तीन कहा जाता था और यह ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा था. इस क्षेत्र में मुस्लिम, यहूदी और ईसाई तीनों धर्म के लोग रहा करते थे. धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण शहर येरूसलम भी इस इलाक़े में स्थित है.

यहूदियों के लिए यह इलाक़ा बेहद पवित्र माना जाता है. द्वितीय विश्व युद्ध के समय जब पूरी दुनिया में यहूदी अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों से परेशान थे तो उन्होंने एक नया “यहूदी देश” बनाने की सोची.

अब ज़रा पीछे चलते हैं , साल 1917 में जब प्रथम विश्व युद्ध चल रहा था और ऑटमन साम्राज्य हारने की कगार पर था, तभी ब्रिटेन के विदेश मंत्री सर आर्थर बैलफॉर ने कहा कि हम यहूदियों को युद्ध खत्म होने के बाद फिलिस्तीन में बसाएँगे. उन्होंने कहा कि हम यहूदियों के लिए एक राष्ट्र बनाने में उनकी मदद करेंगे. इस घोषणा को बैलफॉर डिकलेरेशन के नाम से जाना जाता है. यहूदियों को पहली बार अपने लिए एक देश का सपना सच होता दिखा.

पहले विश्व युद्ध के बाद बड़ी संख्या में फिलिस्तीन में यहूदी शरण लेने लगे, यहां इस समय यहूदियों की कुल आबादी सिर्फ 3 फीसदी थी, लेकिन अगले तीस साल में यह बढ़कर 30 फीसदी तक पहुंच गई. एक तरह से यहूदियों ने इसे अपना घर मान लिया और ब्रिटेन का वादा तो पहले से ही था. इसी बीच दूसरा विश्व युद्ध हो गया. जर्मनी से लाखों यहूदी फिलिस्तीन की ओर भागने लगे, क्योंकि उन्हें लगने लगा था अगर हिटलर के प्रकोप से जीवित रहना है तो हमें अपने ही देश जाना होगा.

लेकिन तब तक फ़िलिस्तीन में मुस्लिम अधिक थे और अभी तक यह आधिकारिक रूप से देश बना भी नहीं था. ब्रिटेन ने फ़िलिस्तीन को 1947 में आज़ादी देने की बात की. दिक्कत ये हुई कि दोनों समुदायों मुस्लिम और यहूदियों ने इसे अपना अपना देश मान लिया और झगड़ा शुरू हो गया और यह मामला संयुक्त राष्ट्र में पहुँचा.

1947 में यूएन ने प्रस्ताव दिया कि इस जगह को दो देशों में बांट दिया जाये – एक हिस्सा था यहूदी राज्य और एक था अरब राज्य. और इस तरह साल 1948 में इजराइल एक देश बनकर आ गया. तब यहाँ लगभग साढ़े छः लाख यहूदी थे. लेकिन अभी भी एक बड़ी समस्या थी येरूसलम क्योंकि यहां आधी आबादी यहूदियों की थी और आधी आबादी मुसलमानों की. इसलिए यूएन ने फैसला दिया कि येरूसलम को अंतर्राष्ट्रीय सरकार के द्वारा चलाया जाएगा. इस समय तक इज़रायल राष्ट्र को जो ज़मीन दी गयी थी उसमें यहूदी और मुस्लिम दोनों बस्तियाँ थीं.

लेकिन इज़रायल के आस पास के देशों को यह फ़ैसला रास नहीं आया. एक ही साल के अंदर 1948 में अरब देशों मिस्र, जॉर्डन, इराक़ और सीरिया ने नए बने देश इज़रायल पर हमला कर दिया. इसे पहला अरब इज़रायल युद्ध भी कहा जाता है. यह युद्ध अरब देशों के लिए घातक साबित हुआ. नए बने देश इज़रायल ने न सिर्फ़ अदम्य साहस दिखाकर अरब सेना से अपने देश को बचाया बल्कि जो भूमि फ़िलिस्तीन राष्ट्र के लिए निर्धारित थी उस पर भी क़ब्ज़ा कर लिया. यही नहीं इज़रायल ने आधे येरूसलम पर भी क़ब्ज़ा कर लिया.

अब आइ असली मुसीबत. इज़रायल और इज़रायल के क़ब्ज़े

वाली ज़मीन में रहने वाले अरब मुस्लिम शरण के लिए भागने लगे. चूँकि उनको जो ज़मीन फ़िलस्तीन देश के लिए मिलीं थी उस पर तो इज़रायल ने क़ब्ज़ा कर लिया था. सिर्फ़ दो इलाक़े ऐसे थे जहाँ पर वे लोग शरण पा सके- ग़ज़ा पट्टी और वेस्ट बैंक. 1948 के युद्ध में वेस्ट बैंक पर जॉर्डन का नियंत्रण हो गया था.

साल 1967 में एक बार फिर से अरब देशों और इज़रायल में युद्ध हुआ. यह युद्ध छः दिवसीय युद्ध के नाम से जाना जाता है. इस युद्ध में अरब देशों की हार के बाद इज़रायल ने फिर से वेस्ट बैंक और ग़ज़ा पर क़ब्ज़ा कर लिया.