पारसी धर्म का इतिहास

पारसी धर्म दुनिया के प्राचीन धर्मों में से एक है. एक समय ऐसा भी था जब यह ईरान का राष्ट्रीय धर्म था. इस धर्म की स्थापना जरथुस्त्र ने की थी. इस धर्म को जोरोएस्ट्रिनिइजम के नाम से जाना जाता है. चूँकि इसका उदय ईरान में हुआ था जिसे तब फ़ारस कहा जाता था, इसलिए इसे पारसी धर्म भी कहा जाता है. यह दुनिया के सबसे पुराने एकेश्वरवादी धर्मों में से एक है.

इसकी स्थापना पैगंबर जरथुस्त्र ने प्राचीन ईरान में 3500 साल पहले की थी. एक हजार सालों तक जोरोएस्ट्रिनिइजम दुनिया के एक ताकतवर धर्म के रूप में रहा. 600 BCE से 650 CE तक इस ईरान का यह आधिकारिक धर्म रहा लेकिन आज की तारीख में पारसी धर्म दुनिया का सबसे छोटा धर्म है.

सातवीं शताब्दी में अरब मुसलमानों ने ईरान को पराजित कर वहाँ के ज़रथुष्ट्र धर्मावलम्बियों को प्रताड़ित करके जबरन इस्लाम में परिवर्तित कर दिया था. ऐसी मान्यता है कि कुछ ईरानियों ने इस्लाम नहीं स्वीकार किया और वे भारत भाग आये और यहाँ गुजरात तट पर नवसारी में आकर बस गये. वर्तमान में भारत में लगभग एक लाख पारसी हैं जिनमें से अधिकांश मुंबई में रहते हैं. ईरान में कुछ हजार पारसियों को छोड़कर लगभग सभी पारसी अब भारत में ही रहते हैं.

यह एक धर्म एकैकाधिदेववादी धर्म है, जिसका मतलब है कि पारसी लोग एक ईश्वर ‘अहुरमज्द’ में आस्था रखते हुए भी अन्य देवताओं की सत्ता को नहीं नकारते. अहुरमज्द उनके सर्वोच्च देवता हैं, परन्तु दैनिक जीवन के अनुष्ठानों व कर्मकांडों में ‘अग्नि’ उनके प्रमुख देवता के रूप में दृष्टिगत होते हैं. इसीलिए पारसियों को अग्निपूजक भी कहा जाता है.

जेंद अवेस्ता पारसियों का सर्व प्रमुख ग्रंथ है जो अवस्ताई भाषा में लिखा गया है. अवस्ताई प्राचीन ईरानियन भाषा है. इतिहासकारों का मानना है कि यह भाषा 1500 से 1100 ईस्वी पूर्व तक प्रयोग में थी. क्योंकि यह एक धार्मिक भाषा बन गई, इसलिए इस भाषा के साधारण जीवन से लुप्त होने के पश्चात भी इसका प्रयोग नए ग्रंथों को लिखने के लिए होता रहा. यह वैदिक संस्कृत से बहुत मिलती-जुलती है और यह प्राचीन (पश्चिमी) फ़ारसी से भी मिलती जुलती है. अवस्ताई भाषा में रचनाएँ कम हैं इसलिए अवस्ताई शब्द-व्याकरण समझने के लिए भाषावैज्ञानिक वैदिक संस्कृत का पहले अध्ययन कर उसकी सहायता लेते हैं क्योंकि अवस्ताई और वैदिक संस्कृत में इस क्षेत्र में निकट का सम्बन्ध है.

पैग़म्बर ज़रथुष्ट्र

जरथुष्ट्र का जन्म पश्चिमी ईरान के अजरबेजान प्रान्त में हुआ था. उनके पिता का नाम पोमशष्पा और माता का नाम दुरोधा था. अनुसार इनका पारिवारिक नाम स्पितमा (अत्यधिक श्वेत) था. ज़रथुष्ट्र के जन्म से पहले वहां के निवासियों का धर्म प्रकृति की पूजा पर आधारित था. उन के मुख्य देवता सूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी आदि थे. परन्तु सूर्य को सबसे बड़ा देवता माना जाता था.

उन्होंने 20 वर्ष की उम्र में घर छोड़कर 10 वर्षों तक उषी – दारेन पर्वत पर चिन्तन मनन करते हुए ज्ञान प्राप्त किया और अपने गांव लौट आये. वापस आकर उन्होंने लोगों को अपने ज्ञान की दीक्षा देनी शुरू की. लेकिन उनका नया धर्म कोई स्वीकार नहीं कर रहा था तो वह बैक्ट्रिया (आधुनिक अफगानिस्तान) आकर वहां के शासक कुमार कावा विश्ताश्पा , उनके दरबारी एवं जनता को अपने धर्म की दीक्षा देने चले गए. उन्होंने बैक्ट्रियाई दरबार के एक मंत्री की पुत्री से शादी कर अगले 30 वर्षों तक चीन तिब्बत आदि देशों में अपने धर्म का प्रचार किया, 77 वर्ष की उम्र मे वह बल्ख ( आधुनिक काबुल ) के एक अग्नि मंदिर मे प्रार्थना कर रहे थे जहां एक हत्यारे ने छुरा भोंककर उनकी हत्या कर दी.

ज़रथुष्ट्र ने तीन शादियाँ की. उनकी पहली दो पत्नियों से उन्हें तीन बेटे, इसत वस्त्र, उर्वतत नारा, और हवारे चित्रा, और तीन बेटियां, फ्रेनी, थ्रीती और पौरुचिस्ता हुईं. उनकी तीसरी पत्नी, ह्ववी, निःसंतान थी.

धर्म दर्शन और मान्यताएँ

यह एकेश्वरवादी धर्म है.अग्नि को ईश्वर का प्रतीक समझा गया है और उनकी पूजा की जाती है. इस धर्म के अनुसार ईश्वर ने मनुष्य बनाया है. मनुष्य अपने कर्मों के लिए स्वयं उत्तरदायी होगा. ईश्वर ने मनुष्य की रचना सुख की प्राप्ति के लिए की है, यदि मनुष्य भगवान द्वारा बताये गए मार्ग पर चले तो प्रकृति के पास सुख देने की क्षमता है. मनुष्य, आत्मा और शरीर से मिल कर बना है. शरीर नश्वर है लेकिन आत्मा अमर है.

मृत्यु के पश्चात तीन दिन तक आत्मा शरीर के आस – पास रहती है फिर चौथे दिन उसका संसार से नाता टूट जाता है.

फिर आत्मा को उसके कर्मों के अनुसार फल मिलता है. अवेस्ता में कहा गया है कि “प्रत्येक व्यक्ति अपने शुभ – अशुभ कर्मों का भार स्वयं ढोता है तथा कर्मों के अनुसार स्वर्ग और नरक की प्राप्ति करता है “

पारसी धर्म में मूर्ति पूजा को व्यर्थ बताया गया है. इस धर्म के अनुसार मनुष्य के आचार – विचार में दया होनी चाहिए, सत्यता होनी चाहिए, गौ रक्षा, शुद्धता और क्षमा आदि होना चाहिए. बंजर भूमि को उपजाऊ बनाना, निर्जल स्थान पर जल का प्रबंध कराना आदि कार्य बताये गए हैं. पारसी विश्वास करते हैं कि मृत्यु के बाद जीवन है और पुनर्जन्म भी है.