अफ़ग़ान सेना खुद अपने लिए नहीं लड़ी – जो बाइडन
चौतरफा आलोचनाओं से घिरे अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान की हालत के लिए उसके नेता ज़िम्मेदार हैं. उन्होंने कहा कि अमेरिकी सेना को वापस बुलाने का अच्छा समय कभी नहीं था. बाइडन ने राष्ट्र के नाम सम्बोधन में यह सब बातें कहीं. उन्होंने आगे कहा कि अफगानिस्तान से सैनिकों की वापसी का फैसला उनसे पूर्ववर्ती राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने लिया था और उनके (बाइडन) के पास कोई रास्ता नहीं बचा था. बाइडन ने कहा कि उन्हें सेना वापस बुलाने के अपने फैसले को लेकर कोई पछतावा नहीं है और अफगानिस्तान अब अमेरिकी सुरक्षा का विषय नहीं है. अफगानिस्तान को मौजूदा हालात के लिए उन्होंने अफगान नेताओं को ज़िम्मेदार कहा. राष्ट्रपति बाइडन ने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान के नेता देश की भलाई और बेहतरी के लिए साथ नहीं आ सके. उन्होंने कहा कि अफगान सेना को ट्रेनिंग और हथियार दिए गए थे लेकिन मौका आने पर वे युद्ध नहीं कर सके.
बाइडन ने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान की स्थिति देखना उन लोगों के लिए परेशान करने वाला है जिन्होंने अपनी ज़िंदगी के 20 साल वहां हो रही लड़ाई में गंवा दिए. उन्होंने कहा कि उन्होंने अफगानी राष्ट्रपति अशरफ गनी को सलाह दी थी कि वे तालिबान के साथ शांति प्रक्रिया शुरू करें लेकिन उनकी बात नहीं मानी गई. गनी ने कहा कि अफगान सेना तालिबान से लड़ सकती है लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने स्वीकार किया कि अफगान सरकार उनकी अपेक्षा से कहीं अधिक तेजी से गिर गई. उन्होंने कहा कि हमने उन्हें अपना भविष्य खुद तय करने का हर मौका दिया लेकिन हम उन्हें उस भविष्य के लिए लड़ने की इच्छाशक्ति प्रदान नहीं कर सके. बाइडन ने अफगानी सेना को निशाना बनाते हुए कहा कि जब अफगान सेना खुद के लिए लड़ने की इच्छुक नहीं है तो अमेरिकी सैनिकों को इस युद्ध में नहीं मरना चाहिए. उन्होंने कहा कि हमारा उद्देश्य अफगानिस्तान में आतंकवाद से लड़ना था न कि राष्ट्र निर्माण करना या पूर्ण लोकतंत्र स्थापित करना.
दुनिया भर से तालिबान द्वारा अफगानिस्तान पर कब्जेके बाद प्रतिक्रिया आ रही है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा है कि अफगानिस्तान के लोगों ने गुलामी की बेड़ियां तोड़ी हैं. पाकिस्तान शुरू से ही अफगानिस्तान में तालिबान का समर्थन करता आया है. उधर चीन ने भी तालिबान के साथ दोस्ताना संबंध की बात कही है. ईरान का कहना है कि अमेरिका की हार से स्थायी शांति की उम्मीद जगी है. अफगानिस्तान में तालिबान का राज आने के बाद अमेरिका, ब्रिटेन, साउथ कोरिया, ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों ने अपने दूतावासों को ही बंद कर दिया है और राजनयिकों को वापस निकाल रहे हैं.