क्या है तालिबान और कैसे अफगानिस्तान की सत्ता में यह काबिज हो पाया
तालिबान ने अब सारे अफ़ग़ानिस्तान पर अपना कब्ज़ा कर लिया है. अभी भी पश्चिमी देशों में तालिबान को अफगानिस्तान और इस क्षेत्र के लिए बड़ा खतरा माना जाता है. जानिए क्या है तालिबान और कैसे अफगानिस्तान की सत्ता में यह काबिज हो पाया.
कौन हैं तालिबान
1979 में सोवियत आर्मी ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला बोल दिया. यहाँ तत्कालीन शासक दाऊद खान की हत्या के बाद एक कम्युनिस्ट सरकार का गठन किया गया. सोवियत सेनाएं अफ़ग़ानिस्तान में जमी रहीं. इसी दौरान अफगानिस्तान में स्थानीय मुजाहिदीन लगातार विदेशी ताकतों का विरोध करते रहे. मुजाहिद इस्लामिक गुरिल्ला लड़ाकों को कहते हैं. 1985 में उन्होंने एक गठबंधन बना लिया. साल 1989 में सोवियत संघ कमज़ोर हो गया और उसने पूरी तरह अफगानिस्तान खाली कर दिया, लेकिन शांति के बजाय हिंसा शुरू हो गई . रूसी सेना की वापसी के साथ ही मुजाहिदीन आपस में ही भिड़ गए. मुजाहिदीनों ने अपने अपने इलाकों में अपने गुट बना लिए. इसकी वजह से अफगानिस्तान में गृह युद्ध शुरू हो गया. इसी दौरान एक गुट का उदय हुआ वो गुट अफगानिस्तान के छात्रों का था यानी तालिबान .
तालिबान दरअसल सुन्नी इस्लामिक आंदोलन था जिसकी शुरुआत सन् 1994 में दक्षिणी अफगानिस्तान में हुई थी. पश्तो भाषा के शब्द तालिबान का अर्थ होता है स्टूडेंट यानी वह छात्र जो इस्लामिक कट्टरपंथ की विचारधारा में यकीन करते हैं. तालिबान को एक राजनीतिक आंदोलन के तौर पर माना गया जिसकी सदस्यता पाकिस्तान और अफगानिस्तान के मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों को मिलती थी. जब तालिबान का उदय हुआ उस समय अफगानिस्तान से सोवियत संघ की सेनाओं की वापसी हो रही थी. शुरुआत में पश्तूनों के नेतृत्व में तालिबान और ज्यादा ताकतवर हुआ. कहते हैं कि तालिबान सबसे पहले धार्मिक आयोजनों या मदरसों के जरिए मजबूत होता गया और इसका ज्यादातर पैसा सऊदी अरब से आता था. जिसका उद्देश्य वहाबी इस्लाम को बढ़ावा देना था. पश्तून आंदोलन के सहारे तालिबान ने अफगानिस्तान में अपनी जड़े जमा ली और इस आंदोलन का उद्देश्य था कि लोगों को धार्मिक मदरसों में जाना चाहिए. पाकिस्तान हमेशा इस बात से इनकार करता रहा है कि तालिबान के बनने के पीछे वो जिम्मेदार है लेकिन यह बात भी उतनी ही सच है कि तालिबान के शुरुआती लड़ाकों ने पाकिस्तान के मदरसों में ही शिक्षा ली.
सितंबर 1995 में तालिबान ने ईरान के बॉर्डर से लगे हेरात प्रांत पर कब्जा कर लिया. इसके एक साल बाद तालिबान ने बुरहानुद्दीन रब्बानी सरकार को सत्ता से हटाकर अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा कर लिया. 1996 से लेकर 2001 तक अफगानिस्तान में तालिबान का शासन था. अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के दौरान मुल्ला उमर देश का सर्वोच्च धार्मिक नेता था. उसने खुद को हेड ऑफ सुप्रीम काउंसिल घोषित कर रखा था. इस शासन को सिर्फ पाकिस्तान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने ही मान्यता दे रखी थी.
तालिबान ने पाकिस्तान और अफगानिस्तान के पश्तून इलाकों में वायदा किया था कि अगर वे एक बार सत्ता आते हैं तो सुरक्षा और शांति कायम करेंगे. वे इस्लाम के साधारण शरिया कानून को लागू करेंगे. हालाँकि कुछ ही समय में तालिबान लोगों के लिए सिरदर्द साबित हुआ. शरिया कानून के तहत महिलाओं पर कई तरह की कड़ी पाबंदियां लगा दी गईं थी. सजा देने के वीभत्स तरीकों के कारण अफगानी समाज में इसका विरोध होने लगा था.
1998 तक तालिबान ने अफगानिस्तान के 90 प्रतिशत हिस्से पर अपना कब्जा कर लिया था. यहां से तालिबान आतंक का दूसरा नाम बनता गया. सितम्बर 2001 में अमेरिका पर अल कायदा ने हमला कर दिया. इस हमले में तालिबान ने अल कायदा का साथ दिया था और अफगानिस्तान में अल कायदा के ठिकाने थे. अमेरिका ने तालिबान से अल कायदा से ओसामा बिन लादेन को माँगा लेकिन तालिबान ने ओसामा बिन लादेन को हैंडओवर करने से मना कर दिया. बदले में अमेरिका ने अफगानिस्तान पर अपनी सेना भेज दी और तालिबान को सत्ता से बेदखल कर दिया. 2011 में अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान में मार गिराया. साल 2013 में तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर की कराची में मौत हुई. 2020 में अमेरिका ने अफगानिस्तान छोड़ दिया और साल 2021 में तालिबान फिर से ताकतवर हुआ और उसने फिर से अफगानिस्तान पर अपना कब्ज़ा कर लिया.