अफगानिस्तान की सरकार में पाकिस्तान का कितना अहम रोल ?
अफगानिस्तान तालिबान ने नयी सरकार की घोषणा के दी है. मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद (Mullah Hassan Akhund) अफगानिस्तान में तालिबानी सरकार के प्रधानमंत्री (Prime Minister) होंगे. इससे पहले प्रधानमंत्री की दौड़ में सबसे आगे चल रहे मुल्ला बरादर को उप-प्रधानमंत्री बनाया गया है. अमेरिका की आतंकी लिस्ट में शामिल हक्कानी नेटवर्क के प्रमुख सिराजुद्दीन हक्कानी को कार्यवाहक गृहमंत्री बनाया गया है. वे देश की आंतरिक सुरक्षा का ज़िम्मा सम्भालेंगे. इनके अलावा मुल्ला याकूब को रक्षा मंत्री और अमीर मुत्तकी को विदेश मंत्री बनाया गया है. इसे तालिबान की कार्यवाहक सरकार कहा जा रहा है. तालिबान की शक्तिशाली सर्वोच्च कमेटी ‘रहबरी शूरा’ के प्रमुख मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद को प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव तालिबान के शीर्ष नेता मुल्ला हेबतुल्ला अखुंदजादा ने किया था.

मुल्ला हसन अखुंद का जन्म कंधार में हुआ है. वे तालिबान के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं, उल्लेखनीय है कि कंधार में ही तालिबान की भी शुरुआत हुई थी. अखुंद पिछले 20 सालों से रहबारी शूरा का काम देख रहे हैं. इसलिए तालिबान लड़के उनकी काफी इज्जत भी करते हैं. तालिबान के अन्य नेताओं की सैनिक पृष्ठभूमि के उलट वे एक धार्मिक और इस्लामी विद्वान के रूप में जाने जाते हैं. मुल्ला अखुंद का पाकिस्तान से गहरा नाता है. उन्होंने पाकिस्तान के कई मदरसों में पढ़ाई की है.
रहबरी शूरा जो कि तालिबान की सर्वोच्च कमेटी है इसका संचालन अखुंद ही करते हैं. शूरा ही शरिया इस्लामिक क़ानून की राजनीतिक और सामाजिक व्याख्या करती है. शरिया को तालिबान ने अफगानिस्तान में शरिया क़ानून को लागू करने की घोषणा की है. अखुंद की धार्मिक कट्टरता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1996 से 2001 तक रही पिछली तालिबानी सरकार में रहते हुए अखुंद ने ही बामियान में सैंकड़ों वर्षों पूर्व बनी बुद्ध की प्रतिमाओं को नष्ट करने का आदेश दिया था.
तालिबान की इस सरकार ने कई सवालों को भी जन्म दिया है. सबसे पहला सवाल तो तालिबान के मंसूबों को लेकर है. तालिबान कहता रहा है कि वो अब पुराना तालिबान नहीं है और शांति चाहता है लेकिन नई सरकार का स्वरूप कुछ और ही कहता है. इस सरकार में एक भी महिला को जगह नहीं दी गयी है और न ही अफगानिस्तान के विभिन्न समुदायों के लोगों को शामिल किया गया है. यही नहीं सरकार में शामिल अधिकांश मंत्रियों के पाकिस्तान के साथ गहरे सम्बंध हैं. इन्होंने पाकिस्तान के मदरसों में शिक्षा पायी है.
सरकार में गृह मंत्री बनाए गए सिराजुद्दीन हक्कानी कुख्यात आतंकी संगठन हक्कानी नेटवर्क के प्रमुख हैं. हक्कानी नेटवर्क ने तालिबान के साथ मिल कर अमेरिका और अफ़ग़ान सेना के ख़िलाफ़ युद्ध लड़ा था. सिराजुद्दीन हक्कानी पर अमेरिकी सैनिकों और बेगुनाह अफ़ग़ान लोगों को जान से मारने का आरोप है. वे अमेरिका की मोस्ट वांटेड सूची में हैं और उन पर पचास लाख अमेरिकी डालर का इनाम रखा गया है.
वहीं प्रधानमंत्री पद की दौड़ में नम्बर वन चल रहे मुल्ला अब्दुल गनी बरादर नाटकीय ढंग से इस दौड़ से बाहर हो गए. उन्हें उप प्रधानमंत्री बनाया गया है. मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर उन 04 लोगों में एक हैं, जिन्होंने 1994 में तालिबान का गठन किया था. वे ही दोहा में अमेरिका से वार्ता करने वाले गुट का नेतृत्व कर रहे थे. ऐसा माना जा रहा है कि उन्हें पाकिस्तान पसंद नहीं करता है.
पाकिस्तान ने सरकार गठन में बहुत बड़ी भूमिका निभायी है. ऐसे में सवाल उठता है कि तालिबान में पाकिस्तान का गहरा दख़ल क्यों है जबकि तालिबान ने कहा है कि वे किसी भी विदेशी का अपनी ज़मीन पर दख़ल स्वीकार नहीं करेंगे. दरसल
दरअसल पाकिस्तान की तालिबान से दोस्ती जगज़ाहिर है मगर इस सरकार के गठन में पाकिस्तान चाहता है कि ऐसे लोग जो किसी भी रूप में उसे अनसुना कर दें, वे सरकार में नहीं होने चाहिए. तालिबान पर पाकिस्तान ने कई एहसान किए हैं. अपनी ज़मीन मुहैय्या कराई, हथियार और फंड दिए और आरोप तो यहाँ तक हैं कि ख़ुफ़िया सूचनाएँ भी साझा की. बिना पाकिस्तानी मदद के अमेरिका और नेटो जैसी सेनाओं से युद्ध करना तालिबान के लिए मुश्किल होता. अब तालिबान को एहसान तो चुकाने होंगे. पाकिस्तान अफगानिस्तान में ऐसी सरकार चाहता है जिससे भारत के सम्बंध अच्छे ना हों. पिछली सरकार के भारत से बेहद अच्छे रिश्ते थे जो पाकिस्तान के लिए सामरिक रूप से एक बड़ा सिरदर्द था.