चारों तरफ़ ख़राब यहाँ और भी ख़राब

आज के हालात पर दुष्यंत कुमार की एक कविता हालात-ए-जिस्म सूरत-ए-जाँ और भी ख़राबचारों तरफ़ ख़राब यहाँ और भी ख़राब नज़रों में आ रहे हैं नज़ारे बहुत बुरेहोंटों में आ रही है ज़बाँ और भी ख़राब पाबंद हो रही है रिवायत से रौशनीचिम्नी में घुट रहा है धुआँ और भी ख़राब मूरत सँवारने में बिगड़ती चली गईपहले से हो गया
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