विचार | इसी आज़ादी ने आपको “भीख” बोलने की आज़ादी दी है

कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया पर सनुने में आया कि 1947 में हमें आज़ादी नहीं भीख मिली थी और असली आज़ादी हमें 2014 में मिली, हो सकता है कुछ लोग इस बात से सहमत भी हो पर ये जो आप को देश की आज़ादी का अपमान करने का अधिकार मिला है न ये भी उसी भीख का परिणाम है.

देश की आज़ादी का अपमान करने का साहस या फिर कहें दुस्साहस करने का हम सोच भी कैसे सकते हैं? 1857 की क्रांति से1947 तक या कहें उसके बाद भी जाने कितने स्वतंत्रता सेनानियों की शहादत के बदले देश को आज़ादी मिली है और देश को चाहिए कि स्वतंत्रता संग्राम के हर सेनानी का सम्मान कि या जाये, उनके शहादत दिवस को और उनकी शहादतों को आवश्यक पाठ्यक्रम के रूप में पढ़ाया जाये, जिससे युवाओं को और देश की भावी पीढ़ी को देश कि आज़ादी का और आज़ादी के लिए दिए गए बलिदानों का महत्व समझ में आये और वो समझ सके कि हमारी आज़ादी कोई भीख नहीं बल्कि देश के वीरों के बलिदान से,उनके लहू से तिलक लगा कर आयी है और आज हम उन सभी का अपमान कर रहे हैं.

देश धर्म में तो बटं ही गया है अब स्वतंत्रता सेनानियों का भी बटंवारा होनेलगा है. हर राजनीतिक दल ने अपने अपने हिसाब से हमारे आज़ादी के नायकों को बाँट रखा है और साबित करने में तुले है कि उन्हीं कि वजह से आज़ादी आयी है, पर आज़ादी सिर्फ मट्ठी भर लोगो से नहीं आयी,आज़ादी में देश के हर कोने से लोगो का योगदान और बलिदान दोनों ही अतलुनीय है.

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23 मार्च को जब हम भगत सिहं को यद् करते हैं तब हम जतींद्र नाथ का बलिदान दिवस क्यों नहीं मनाते जिन्होंने जेल में भूख हड़ताल से अपनी जान दे दी थी , हम क्यों सूर्यसेन को याद नहीं करते, क्यों हम कभी सचिन सान्याल ,रास बिहारी बोस इन सबको याद नहीं करते और भी जाने कितने ही ऐसे नाम है जिन्हें देश की जनता जानती ही नहीं है,और जानती है तो बस गाँधी ,नेहरू, सुभाष चद्रं बोस और सावरकर और इन्हें अपने हिसाब से बाँट कर आज़ादी की अभिव्यक्ति का लुत्फ़ उठाते हैं.

हम कितनी महिला स्वतंत्रता सेनानियों को जानते है ?

सिर्फ सरोजिनी नायडू या एनी बेसटें पर बहुत सी औरतों ने आज़ादी की इस लड़ाई में भाग लिया था जैसे प्रीती लता वादेदार ,कल्पना दत्ता और भी बहुत सारे नाम हैं जो आज तक किताबों में भी गुम नाम हैं. देश कैसे भूल सकता है जलियांवाला बाग को और उधमसिहं को, कैसे भूल सकते हैं की 17 नवबंर 1928 को लाला लाजपत राय साइमन कमीशन के वि रोध मेंहुए लाठी चार्ज में शहीद हुए ? पर देश की तस्वीर अब बदलने लगी है क्योंकि देश के इतिहास के साथ छेड़छाड़ ही हो रही है,कहीं नाम बदले जा रहे हैं तो कहीं आज़ादी के साक्ष्यों को मनोरंजक पार्क के रूप में तब्दील कि या जा रहा है. देश के इति हास को बदलने से हमारी आनेवाली पीढ़ी अपने देश का इति हास कैसे जान पायेगी और कैसे वो जलियांवाला के दर्द को महसूस कर पायेगी ?
इतिहास को बदल कर आप इतिहास बदल नहीं सकते पर हाँ आप लोगो कि भावनाओं को आहत ज़रूर कर रहे हैं और देश की आज़ादी का अपमान भी ,अगर देश को गौरवशाली इतिहास देना है तो नया इतिहास रचिये न कि देश के अतीत से छेड़छाड़ कीजिये और सबसे अहम बात देश की आज़ादी और आज़ादी दिलानेवालो का सम्मान कीजिये.

साभार : निहारिका रानी

Niharika

उत्तराखंड के हल्द्वानी में रहने वाली निहारिका, पिछले कई वर्षों से स्वतंत्र लेखन कर रही हैं. यहाँ प्रस्तुत विचार उनके अपने हैं.